Friday, August 20, 2010

इतिहास रचने को तैयार है पीपली लाइव,Based on the condition of Bundelkhand farmers

इतिहास रचने को तैयार है पीपली लाइव

हिंदी सिनेमा में आर्ट सिनेमा की सूरत दो दिन बाद बदलने जा रही है। बिना किसी बड़े सितारे के सहारे सिर्फ कहानी का सहारा लेकर बनी फिल्म पीपली लाइव हिंदी सिनेमा का एक नया इतिहास रचने को तैयार है। ऐसा पहली है कि एक ऑफ बीट फिल्म को देश के ६०० और विदेश के सौ सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज किया जा रहा है। इसमें ब्रिटेन के सिनेमाघर शामिल नहीं हैं, वहां इस फिल्म को दुनिया की मशहूर वितरक कंपनी आर्टिफिशियल आई ने खरीदा है जो इसे वहां २४ सितंबर को रिलीज करेगी।

सिनेमा में प्रचार और विपणन का रिकॉर्ड भी पीपली लाइव ने बना लिया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि करीब तीन करोड़ की लागत से बनी एक हिंदी फिल्म के दुनिया भर में सिर्फ प्रचार पर सात करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। आमतौर पर हिंदी फिल्मों के प्रचार पर इसकी लागत से आधा या इसके बराबर ही खर्च होता है लेकिन निर्माण लागत के दोगुने से भी ज्यादा इसके प्रचार पर खर्च करके आमिर खान की प्रोडक्शन कंपनी ने हिंदी सिनेमा में प्रचार की अहमियत को नए सिरे से परिभाषित किया है। नईदुनिया से खास बातचीत में आमिर खान ने बताया कि पीपली लाइव अपनी निर्माण लागत और प्रचार पर हुए खर्च को पहले हीसैटेलाइट राइट्स बेचकर वसूल कर चुकी है। पीपली लाइव के सैटेलाइट राइट्स दस करोड़ रुपये में बिक चुके हैं।

मतलब यह कि अब सिनेमाघरों से जो भी रकम आमिर खान की झोली में आएगी, वह उनका शुद्ध मुनाफा होगा। आम तौर पर बड़े सितारों वाली हिंदी फिल्में ही देश के पांच सौ से ऊपर सिनेमाघरों में रिलीज होती हैं। इस लिहाज से पीपली लाइव का एक साथ छह सौ सिनेमाघरों में रिलीज होना फिल्म उद्योग के लिए कथानक के लिहाज से नई शुरुआत मानी जा रही है। ट्रेड विशेषज्ञ विकास मोहन का मानना है कि पीपली लाइव अगर कामयाब होती है तो हिंदी सिनेमा में अच्छी कहानियों का दौर लौटेगा और सितारों पर फिल्म उद्योग की निर्भरता कम होगी।

पीपली लाइव को मिले प्रचार का ही नतीजा है कि ब्रिटेन की मशहूर वितरक कंपनी आर्टिफिशियल आई ने पहली बार कोई हिंदी फिल्म खरीदी है। यह कंपनी विश्व सिनेमा की उन फिल्मों को ही अपने खास सिनेमाघरों में प्रदर्शित करती है, जो लीक से हटकर बनी हुई होती हैं। आमिर ने यह राज भी खोला कि पीपली लाइव दरअसल गांवों में बढ़ते शादी और रीयल इस्टेट कारोबार की तरफ लोगों का ध्यान खींचती है(पंकज शुक्ल,नईदुनिया,दिल्ली,12.8.2010)।
http://www.bundelkhanddarshan.com/bundelkhand-in-bollywood.html

भूखे बुंदेलों के हक पर अमीरों का डाका

उरई। बुंदेलखंड के बीहड़ में बसे गांवों के लोग भुखमरी के मुहाने पर खडे़ हैं। उरई जिले के नंदीगांव व रामपुरा ब्लाकों के दर्जनों गांवों के बाशिंदों के घरों में महीने में बमुश्किल 15 दिन ही चूल्हा जलता है और वह भी एक समय। ज्यादातर भूमिहीन और गरीबों के पास बीपीएल और अंत्योदय कार्ड तक नहीं हैं।

पूरा भोजन ना मिलने से महिलाएं, पुरुष और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। दलित बाहुल्य गांवों की हालत तो और भी ज्यादा खराब है। सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं अमीरों के पास पास बंधक है। जिले के नंदीगांव विकासखंड के मानपुरा गाव में 15 लोगों के बीपीएल और 31 अंत्योदय कार्डधारक हैं। कार्डधारकों में 20-20 बीघा के मालिक शीतल और अशोक, 15-15 बीघा के ठकुरदास व वृंदावन, 18 बीघा के फुलजारी और 10 बीघा के रूप नारायण शामिल हैं। सीमात किसान और भूमिहीन फूलमती, रघुराई, चेतराम, शिवकुमार, हरगोविंद, ज्ञानसिंह, राजकुमार समेत तमाम ग्रामीणों के पास गरीबी कार्ड नहीं हैं। रामपुरा विकास खंड की हमीरपुरा ग्राम पंचायत को अंबेडकर ग्रामसभा का दर्ज प्राप्त है फिर भी इस गाव के लोगों की बदहाली प्रशासन के लिये चिंता का सबब नहीं बन पा रही।

रामनारायण दोहरे भूमिहीन हैं, लेकिन उनके पास गरीबी कार्ड नहीं है। वे बताते हैं कि दस दिन भी घर में खाना बन जाये तो बड़ी बात है। पड़ोसियों से मांगकर भूख मिटाने का इंतजाम करना पड़ता है। उनके पांच बच्चे अभी से आधे पेट रहकर सो जाने के आदी हैं। रामनारायण को स्वयं भी पूरी खुराक न मिलने से कमजोरी आ गयी है, जिसकी वजह से जाबकार्ड होते हुए भी प्रधान उन्हें काम नहीं देता।

60 वर्षीय नाथूराम की समस्या कुछ अलग है। उनके पास बीपीएल कार्ड तो है लेकिन अनाज खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। इस गाव में सिर्फ 37 लोगों को बीपीएल व 20 को अंत्योदय कार्ड जारी हुए हैं जबकि 75 प्रतिशत दलित आबादी वाले इस गाव में लगभग हर परिवार की हालत आर्थिक रूप से दयनीय है। कई लोग दाल या सब्जी के बजाय खड़े नमक से सूखी रोटी खाकर गुजारा करते हैं लेकिन फिर भी उनके पास सामान्य श्रेणी का राशनकार्ड है।

भट्टपुरा में भूमिहीन भूरेलाल के 6 पुत्रियां व एक पुत्र है। फिर भी इनके पास एक एपीएल कार्ड है। अंत्योदय कार्डधारक कढ़ोरे ने बताया कि वे उधार लेकर सस्ता राशन खरीदते हैं और बाद में आधा सामान बाजार में ब्लैक कर देते हैं जिससे उधार चुकता कर सके। मिर्जापुर जागीर में 50 बीघा के रामरतन के पास तो बीपीएल कार्ड है, लेकिन सतीश, सुंदरलाल व सूरज के पास एपीएल कार्ड ही हैं जबकि यह सब पूरी तरह भूमिहीन हैं। नरौल में 40 प्रतिशत भूमिहीनों के पास गरीबी कार्ड नहीं हैं। कुछ ऐसे ही हालत बुंदेलखंड के कई अन्य जिलों के गांवों की भी है।

http://www.bundelkhanddarshan.com/bundelkhand-education.html

Sorce:http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6384258.html