Wednesday, July 7, 2010

हमदर्दी के नाम पर बुंदेलखंड की सियासत




बुंदेलखंड को लेकर उत्तर प्रदेश में फिर राजनीति गरमा गयी है. बुदेलखंड के लिए पैकेज देने के कांग्रेस के दांव के बाद दूसरे दल कांग्रेस को पटखनी देने की जुगत में हैं. कांग्रेस और सपा तो लगातार इसे सियासी पैकेज साबित करने में जुटी है, जबकि बुंदेलखंड मसले पर भाजपा किस करवट बैठेगी ये अभी साफ़ नहीं है....
ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि बुंदेलखंड पर दिल्ली की सरकार के पैकेज घोषित करने के बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है. कांग्रेस ने बुंदेलखंड पर अपना दांव चल दिया है तो सपा-बसपा इस दांव को उलटा करने में जुट गयी है. कांग्रेस नेता इस पैकेज के बाद बुंदेलखंड में पार्टी को खड़ा करने के सपने सजोने लगे हैं. कांग्रेस नेताओं को लगता है कि बुंदेलखंड के बहाने उन्हें एक बड़ा हथियार मिल गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी का मानना है कि राहुल गांधी उस इलाके कि समस्याओं से खुद रूबरू हुए थे, जो दस सालों से उपेक्षित था, अब अगर बसपा को लग रहा है कि ये पैकेज कम है तो क्यों नहीं बसपा राज्य के बजट से उस कमी को पूरा करके बुंदेलखंड के लिए काम करती.

इसके पलटवार में बहुजन समाज पार्टी का कहना है कि आधी-अधूरी धनराशि का पैकेज घोषित कर इस इलाके की बदहाली के लिए कांग्रेस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या कहते हैं कि कांग्रेसी इसको लेकर राहुल गांधी के महिमामंडन में जुटे हैं, उन्हें बुंदेलखंड की समस्याओं से कुछ लेना-देना नहीं है. श्री मौर्या का कहना है कि बुन्देलखण्ड की जनता ने झांसी और ललितपुर के विधानसभा उपचुनाव में बसपा को जिता के बता दिया है कि वो किसके साथ है. इस हार के बाद ही कांग्रेस को पैकेज की याद आयी.
कुछ इसी तरह की बातें सपा भी कर रही है. सपा बुंदेलखंड पर कांग्रेस की राजनीति आलोचना कर रही है तो बसपा को भी आड़े हाथों ले रही है. सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि ये सब वोट बैंक के लिए हो रहा है न कि बुंदेलखंड की जनता के भले के लिए.
जबकि भारतीय जनता पार्टी इस मसले पर अपना रुख तय नहीं कर पायी है. वो इस पैकेज के बहाने केंद्र और राज्य दोनों पर निशाना साधना चाहती है. वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी का कहना है कि अगर वाकई ये जनता के भले के लिए है तो अच्छी बात है लेकिन अगर इसमें राजनीति की गंध आती हो तो ये ठीक नहीं है. क्योंकि बुंदेलखंड की समस्याओं पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. बहरहाल ये साफ़ नज़र आ रहा है कि सभी दल अपनी रणनीति २०१२ के विधानसभा चुनाव को लेकर बना रहे हैं. सबकी कोशिश है कि किसी तरह से बुंदेलखंड की जनता को खुश कर लिया जाए.

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