Friday, October 14, 2011

Rs 203 crore set up for industries in Sagar district will cost for bundelkhand area.

सागर जिले के बंडा में 203 करोड़ रुपये लागत से होगी उद्योगों की स्थापना
मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड अंचल के औद्योगिक विकास तथा वहाँ रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के मकसद से राज्य सरकार द्वारा संकल्पित प्रयास किये जा रहे हैं। इसी सिलसिले में आज मेसर्स मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड और मध्यप्रदेश ट्रेड एण्ड इन्वेस्टमेंट फेसिलिटेशन कार्पोरेशन (ट्राईफेक) के मध्य 203 करोड़ रुपये की निवेश परियोजना की स्थापना के लिये एमओयू सम्पन्न हुआ। यह कम्पनी सागर जिले के बंडा में उद्योग स्थापित करेगी। वाणिज्य तथा उद्योग और रोजगार मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय की मौजूदगी में हुए इस कार्यक्रम में मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट्स की ओर से प्रबंध संचालक श्री पंकज ओसवाल और ट्राईफेक के प्रबंध संचालक श्री पी.के. दास ने करारनामे पर हस्ताक्षर किये। इस अवसर पर प्रमुख सचिव वाणिज्य और उद्योग श्री प्रसन्न कुमार दाश भी उपस्थित थे।
मेसर्स मध्य भारत एग्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड मूलतः भीलवाड़ा (राजस्थान) की कम्पनी है और फर्टिलाइजर के क्षेत्र में कार्यरत है। यह कम्पनी प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र के सागर जिले की बंडा तहसील में 203 करोड़ रुपये के निवेश से सिंगल सुपर फास्फेट, ग्रेन्युलर सिंगल सुपर फास्फेट, सल्फ्यूरिक एसिड, वेंटोनाइट और रॉक फास्फेट बेनिफिशिएशन परियोजना स्थापित करेगी। इस मक़सद से मध्यप्रदेश खनिज विकास निगम लिमिटेड के साथ रॉक फास्फेट की आपूर्ति के लिये इस कम्पनी का अनुबंध हो चुका है। इस परियोजना से बुंदेलखण्ड क्षेत्र में 500 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और 800 व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार हासिल हो सकेगा।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की निवेश मित्र नीतियों के कारण बड़ी संख्या में पूंजी निवेश के लिये कम्पनियाँ आकर्षित हो रही हैं। प्रसिद्ध बहुराष्ट्रीय कम्पनी रियो टिंटो द्वारा छतरपुर जिले की बक्सवाहा तहसील के ग्राम बुंदर में डायमंड एक्सप्लोरेशन का कार्य शुरू कर दिया गया है। इसके साथ ही पन्ना जिले में 6 सीमेंट प्लांट की स्थापना प्रस्तावित है। इस उद्देश्य से लाइम स्टोन के प्रास्पेक्टिव लायसेंस संबंधित कम्पनियों को आवंटित किये जा चुके हैं। इसके अलावा एनटीपीसी और जीएमआर द्वारा भी छतरपुर जिले में पॉवर प्लांट स्थापित किये जा रहे हैं।

Monday, October 3, 2011

7 killed as blast rips apart house in Tikamgarh

Seven persons, including two children, were killed and five others sustained grievous injuries in a powerful explosion that ripped apart a house in a thickly populated residential colony near the new bus stand at Mahuraipur in Tikamgarh district, on Friday.
"Six people were killed on the spot while one person died in the hospital. Five others, including three children, have been admitted to the district hospital at Tikamgarh. A case has been registered," said sub-divisional officer (police) Anil Jhakaria.

The blast took place in the house of Kummu Kachbalia in Tikamgarh town at around 3.15 pm, causing extensive damage to the nearby houses and killing the seven people and injuring five others.
The blast, which left a crater of about five feet, was apparently caused by the explosives stored in the house. The blast was so powerful that the roof was blown off and mangled bodies were found strewn all over.
Jhakaria said the victims have been identified as Manisha (6), Rajpal (25), Birendra (20), Sonu (22) and Arun (30). Two others, including a three-year-old, are yet to be identified. The children, who were playing in the area, bore the brunt as three of them were admitted to the hospital with serious injuries.
While forensic experts began looking into the reasons for the powerful explosion, the police suspect that some locals, who are into illegal cracker manufacturing, might have stored the explosives in their houses.
However, the police also did not rule out the possibility of explosion of crude bombs. They are searching for the owner of the house K|ummu Kachbalia and others.

Reference

http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-09-30/indore/30229908_1_blast-rips-powerful-explosion-illegal-cracker-manufacturing

Tuesday, September 6, 2011

सुबह होते ही चौराहों पर सजने लगती है 'इंसानों की मंडी'

बांदा।  चौंकिए मत, यह सच है। बुंदेलखण्ड के जनपदों के तकरीबन सभी कस्बों में 'इंसानों की मंडी' लगती है, जहां सूखे और बेरोजगारी से पस्त गरीब दिनभर के लिए खुद की 'बोली' लगाते हैं। इसे बुंदेलखण्ड की बदकिस्मती कहें या कुछ और! सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी के चलते विशेष पैकेज और एक सौ दिन काम की गारंटी देने वाली योजना 'मनरेगा' भी यहां नाकाम साबित हो रही है।

उत्तर प्रदेश में बुंदेलखण्ड के सभी जनपदों बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, ललितपुर व झांसी में कामगारों के हालात बेहद खराब हैं। पिछले कई साल से पड़ रहे सूखे की वजह से यहां के लोग 'कर्ज और मर्ज' के शिकार हो गए हैं। करीब साठ हजार किसानों पर दो अरब से ज्यादा सरकारी कर्ज लद गया है। अदायगी न कर पाने पर किसान आत्महत्या तक करने लगे हैं, हालांकि राज्य सरकार यह मानने को तैयार नहीं है।

लोगों की बेबसी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तकरीबन सभी जनपदों के कस्बों के चौराहों में भोर से ही 'इंसानों की मंडी' सजने लगती है। गांव-देहात से आए गरीब हाथ में फावड़ा-कुदाल व डलिया लिए किसी सेठ-महाजन के आने का बेसब्री से इंतजार करते मिल जाएंगे। इन मंडियों में श्रमिकों को दो श्रेणी में बांटा गया है- पुरुष को 'बेलदार' और महिला को 'रेजा'।

पुरुष को डेढ़ सौ व महिला को सवा सौ रुपये की दिहाड़ी दी जाती है, इसके एवज में उन्हें 12 घंटे कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। काम की ललक में मजदूर खुद की 'बोली' लगाने के लिए मजबूर हैं, कम रेट बताने पर ही काम मिल पाता है।

बांदा के महोतरा गांव के 70 साला बुजुर्ग भोला रैदास के पास एक विश्वा जमीन नहीं है, जर्जर काया में वह लाठी के सहारे रोजाना पांच किलोमीटर पैदल चल कर अतर्रा कस्बे में चारपाई की बुनाई का काम करता है। दिन भर में वह 25-30 रुपये कमा लेता है, सरकारी सुविधा कुछ भी नसीब नहीं है।

वह बताता है कि 'दिन भर में जो कमाया, उसी से शाम को आटा-भात लेकर पेट की आग बुझाते हैं। काम न मिलने पर भूखे पेट रात गुजारनी पड़ती है।' पचोखर गांव की गायत्री (31) व सावित्री (36) का अलग दर्द है। वह बताती हैं कि 'घर में दुधमुंहे बच्चों को छोड़कर काम की तलाश में आई हैं, न तो राशन कार्ड है और न ही जीने का दूसरा सहारा। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का जॉब कार्ड तो बना है, पर प्रधान काम नहीं देते।' ये दोनों पिछले चार साल से यहां काम की तलाश में आती हैं।

चित्रकूट जनपद दशकों से डाकुओं और दादुओं के लिए जाना जाता है, यहां न तो आवागमन के साधन हैं और न ही उद्योग-धंधे। बरगढ़ में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर एशिया की सबसे बड़ी ग्लास फैक्टरी की स्थापना हुई, वह भी बंद है। जंगलों में बसे लोग दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में रोजाना शहर के चक्कर लगाते हैं।

यहां के सरकारी बस स्टॉप पर सैकड़ों की तादाद में श्रमिक एकत्र होकर अपनी 'बोली' लगाते हैं। यही हाल हमीरपुर, झांसी और ललितपुर जनपद का है। ललितपुर के मड़वारी गांव के दलित सियाराम का कहना है, "रोजाना पंद्रह किलोमीटर की दूरी तय कर काम की तलाश में शहर आना उसकी मजबूरी है, क्योंकि गांव में सरकारी काम मिलता नहीं और बड़े लोगों की 'चाकरी' में बसर नहीं किया जा सकता।"

एक सामाजिक कार्यकर्ता नसीर अहमद सिद्दीकी को सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत भारत सरकार द्वारा दी गई सूचना के अनुसार, चालू वित्तवर्ष के चार माह (अप्रैल, मई, जून व जुलाई) में बांदा जनपद में 25,097 मजदूरों को 85 दिन, चित्रकूट में 19,686 मजदूरों को 49 दिन, हमीरपुर में 21,313 को 95 दिन, महोबा में 11,170 श्रमिकों को 135 दिन झांसी में 30,876 को 121 दिन, जालौन में 38,303 को 99 दिन व ललितपुर में 44,409 श्रमिकों को 156 दिन यानी चित्रकूटधाम मंडल में 77,266 लोगों को 364 व झांसी मंडल में 1,13,588 कामगारों को महज 376 दिवस, बुंदेलखण्ड में कुल 1,90,854 कामगारों को 740 दिन ही काम दिया गया है।

नसीर का कहना है, "यह आंकड़ों की बाजीगरी है, गरीबी, भुखमरी और तंगहाली जैसे हालात से जूझ रहे बुंदेलखण्ड में मनरेगा धरती से ज्यादा कागजों पर चल रही है। इसीलिए गरीब रोजी-रोटी की तलाश में रोज बिकने को मजबूर होता है।"

http://www.bhaskar.com/article/UP-farmers-are-dying-in-debt-2405762.html?HF-27=

टीकमगढ़ हादसे में गाय मारे जाने के प्रायश्चित के तौर पर पठा गांव में रैकवार समाज की पंचायत ने पूरे एक कुटुंब को सिर मुंडवाने के अलावा कई और कर्मकांड करने का फरमान सुनाया है।

टीकमगढ़ हादसे में गाय मारे जाने के प्रायश्चित के तौर पर पठा गांव में रैकवार समाज की पंचायत ने पूरे एक कुटुंब को सिर मुंडवाने के अलावा कई और कर्मकांड करने का फरमान सुनाया है।



सामाजिक बहिष्कार से डरे इस कुटुंब के सभी 350 सदस्यों ने सोमवार को सिर मुंडा लिए और बाकी कर्मकांड पूरे करने की जुगत लगा रहे हैं। पंचायत ने यह फैसला शुक्रवार को सुनाया था, लेकिन टीकमगढ़ से महज 8 किमी दूर घटे इस वाकये की प्रशासन को भनक तक नहीं लगी।



दो-तीन दिन पहले पठा गांव के धरमू रैकवार के बेटे बालकिशन की टैक्सी से टकराकर एक गाय की मौत हो गई थी। बालकिशन गांव पहुंचकर यह बात परिवार के लोगों को बताई। बात गांव-समाज के लोगों तक भी पहुंची। इस मामले को लेकर गांव के सम्मानित और वरिष्ठ लोगों की पंचायत बुलाई गई। पंचायत ने निर्णय दिया कि बालकिशन से गौ हत्या हुई है। उसकी मुक्ति के लिए कुटुंब-परिवार के पूरे लोग सिर मुड़वाएं और इलाहाबाद जाकर गंगा स्नान के बाद पुराण बैठकी व पूजन कराकर पूरे गांव को भोज कराएं।



ऐसा न करने पर परिवार का सामाजिक बहिष्कार करने की चेतावनीदी गई। पंचायत का निर्णय मानते हुए परिवार के मुखिया धरमू रैकवार ने परिवार और कुटुंब के 350 लोगों का मुंडन करा दिया है। सोमवार को बालकिशन अपने परिवार के लोगों के साथ गंगा स्नान के लिए इलाहाबाद भी रवाना हो गया। दो दिन बाद परिवार की ओर से समाज को भोज दिया जाएगा। इसके बाद ही यह परिवार गांव के सार्वजनिक जलस्रोतों से पानी भरने, लोगों के यहां आने-जाने और दूसरों को अपने घर बुलाने का पात्र होगा।



पंचायत का फैसला मानना ही पड़ता है




बालकिशन के बड़े भाई गोपी रैकवार ने बताया कि यदि किसी समाज के व्यक्ति से गौ-हत्या हो जाती है, तो पंचायत बुलाई जाती है। पंचायत में गांव के वरिष्ठ सहित समाज के लोग शामिल होते हैं। पंचायत के निर्णय को मानना जरूरी है। पंचायत के निर्णय के विरोध में जाने पर समाज की ओर से निष्कासित कर दिया जाता है।



बालकिशन के चाचा प्रेम कुमार रैकवार ने बताया कि पंचायत का निर्णय यदि नहीं मनाते हैं तो समाज परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर देता है। उन्होंने बताया कि परिवार के बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक ने सिर मुड़वाया है। तहसीलदार मकसूद अहमद का कहना था कि प्रशासन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। मंगलवार को टीम भेजकर जांच कराई जाएगी।

बाबा रामदेव इस बार झांसी से उठाएंगे झंडा

बुंदेलखंड का झांसी एक बार फिर नया राजनीतिक युद्धस्थल बनने जा रहा है। रानी लक्ष्मीबाई की स्मृति को ताजा करने के लिए ही झांसी को बाबा रामदेव ने अपने आंदोलन का अगला पड़ाव चुना है। झांसी से रामदेव दिल्ली की सरकार के खिलाफ आवाज उठाएंगे। रामदेव बोले कि मुझे किसी प्रकार का डर नहीं है और न ही मैं किसी को डराना चाहता हूं। रामदेव समर्थकों को निर्देश मिल रहे हैं कि वे सभी 19 सितंबर को झांसी कूच करें। झांसी में 20-21 सितंबर को दो दिवसीय शिविर लगाया जाना है।

रविवार को एक भेंट में बाबा रामदेव ने बताया कि मेरी लड़ाई करप्शन तथा ब्लैक मनी के खिलाफ है। शिविर लगाने की इजाजत झांसी जिला प्रशासन से ली जा चुकी है। बाबा रामदेव तीन दिन झांसी में रहेंगे। फिलहाल उन्होंने केंद्र के समक्ष अपनी आवाज को रखने के लिए यूपी-उत्तराखंड को मेन सेंटर के रूप में चुना है। इन दोनों राज्य में इस समय गैरकांग्रेसी सरकारें हैं। शिविरों के माध्यम से ही रामदेव अपनी आवाज उठाने की रणनीति बना चुके हैं।

योग गुरु का कहना है कि केंद्र सरकार डर-लालच की रणनीति अपना रही है। लेकिन हम न ही डरेंगे और न ही किसी लालच-लोभ में आएंगे। फोन पर एनबीटी से वार्ता के दौरान रामदेव का कहना था कि ईडी के मामले में मुझे बदनाम करने की साजिश चलाई जा रही है, लेकिन मैं अपनी सही बात पब्लिक के बीच रखूंगा और इसी नाते मैने झांसी को चयन किया है।

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/9863793.cms

Monday, August 22, 2011

आल्हा




बुंदेलखंड की वीर भूमि महोबा और आल्हा एक दूसरे के पर्याय हैं। महोबा की सुबह आल्हा से शुरू होती है और उन्हीं से खत्म। बुंदेलखंड का जन-जन आज भी चटकारे लेकर गाता है-

बुंदेलखंड की सुनो कहानी बुंदेलों की बानी में
पानीदार यहां का घोडा, आग यहां के पानी में

महोबा के ढेर सारे स्मारक आज भी इन वीरों की याद दिलाते हैं। सामाजिक संस्कार आल्हा की पंक्तियों के बिना पूर्ण नहीं होता। आल्ह खंड से प्रभावित होता है। जाके बैरी सम्मुख ठाडे, ताके जीवन को धिक्कार । आल्हा का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि 800 वर्षो के बीत जाने के बावजूद वह आज भी बुंदेलखंड के प्राण स्वरूप हैं। आल्हा
आल्हा गायक इन्हंे धर्मराज का अवतार बताता है। कहते है कि इनको युद्ध से घृणा थी और न्यायपूर्ण ढंग से रहना विशेष पसंद था । इनके पिता जच्छराज (जासर) और माता देवला थी। ऊदल इनका छोटा भाई था। जच्छराज और बच्छराज दो सगे भाई थे जो राजा परमा के यहाॅ रहते थे। परमाल की पत्नी मल्हना थी और उसकी की बहने देवला और तिलका से महाराज ने अच्छराज और बच्छराज की शादी करा दी थी। मइहर की देवी से आल्हा को अमरता का वरदानल मिला था। युद्ध में मारे गये वीरों को जिला देने की इनमें विशेशता थी। लाार हो कर कभी-कभी इन्हें युद्ध में भी जाना पड़ता था। जिस हाथी पर ये सवारी करते थे उसका नाम पष्यावत था। इन का विवाह नैनागढ़ की अपूर्व सुन्दरी राज कन्या सोना से हुआ था। इसी सोना के संसर्ग से ईन्दल पैदा हुआ जो बड़ा पराक्रमी निकला। शायद आल्हा को यह नही मालूम था कि वह अमर है। इसी से अपने छोटे एवं प्रतापी भाई ऊदल के मारे जाने पर आह भर के कहा है-
पहिले जानिति हम अम्मर हई,
काहे जुझत लहुरवा भाइ ।
(कहीं मैं पहले ही जानता कि मैं अमर हूँ तो मेरा छोटा भाई क्यों जूझता)
ऊदल


यह आल्हा का छोटा भाई, युद्ध का प्रेमी और बहुत ही पतापी था। अधिकांष युद्धों का जन्मदाता यही बतलाया जाता है। इसके घेड़े का नमा बेंदुल था। बेंदुल देवराज इन्द्र के रथ का प्रधान घोड़ा था। इसक अतिरिक्त चार घोड़े और इन्द्र के रथ मंे जोते जाते थे जिन्हंे ऊदल धरा पर उतार लाया था। इसकी भी एक रोचक कहानी है। - ‘‘कहा जाता है कि देवराज हन्द्र मल्हना से प्यार करता था। इन्द्रसान से वह अपने रथ द्वारा नित्ःय र्ही आ निषा में आता था। ऊदल ने एक रात उसे देख लिया और जब वज रथ लेकर उ़ने को जुआ, ऊदल रथ का धुरा पकड़ कर उड़ गया। वहां पहुंच कर इन्द्र जब रथ से उतरा, ऊदल सामने खड़ा हो गया। अपनल मार्यादा बचाने के लिए इन्द्र ने ऊदल के ही कथ्नानुसार अपने पांचों घोडे़ जो उसके रथ में जुते थे दे दिये। पृथ्वी पर उतर कर जब घोड़ों सहित गंगा नदी पार करने लगा तो पैर में चोट लग जाने के कारण एक घोड़ा बह गया। उसका नाम संडला था और वह नैनागढ़ जिसे चुनार कहते है किले से जा लगा। वहां के राजा इन्दमणि ने उसे रख लिया। बाद में वह पुनः महोबे को लाया गया और आल्हा का बेटा ईन्दल उस पर सवारी करने लगा।
ऊदल वीरता के साथ-साथ देखने में भी बड़ा सुनछर था। नरवरगढ़ की राज कन्या फुलवा कुछ पुराने संबंध के कारण सेनवा की षादी मं्रंे नैनागढ़ गयी थी। द्वार पूजा के समय उसने ऊदल को दख तो रीझ गयी। अन्त में कई बार युद्ध करने पर ऊदल को उसे अपनल बनाना पड़रा। ऊदल मं धैर्य कम था। वह किसी भी कार्य को पूर्ण करने के हतु शीघ्र ही शपथ ले लेता था। फिर भी अन्य वीरों की सतर्कता से उसकी कोई भी प्रतिज्ञा विफल नही हुई। युद्ध मंे ही इसका जीवन समाप्त हो गया। इसका मुख्य अस्त्र तलवार था।
ब्रहा्रा

यह परमाल का बेटा था। इसकी शादी दिल्ली के महाराज पृथ्वीराज को परम सुन्दी कन्या बेला (बेलवा) से हुई थी थी। पाठकों को यह नही भूलना चाहिए कि महोबी जाति के उतार थे। अतः इनके यहां कोई भी अपनी कन्या को शादी करने में अपना अपमान समझता था। यही कारण था जो ये लोग अपनी शादी में भीषण युद्ध किया करते थे। सत्य तो यह है कि यदि ये अपने राज्य विस्तार के लिए इतना युद्ध करते तो निष्चय ही चक्रवर्ती राजा हो जाते। ब्राहा्रा का ब्याह भी इसी प्रकार हुआ था। कई दिनों तक घोर युद्ध करना पड़ा। इसके गौने में तो सभी वीर मार डाले गये। आल्हा काल की यह अन्तिम लड़ाई मानी जाती है जिसमें अमर होने के नाते केवल आल्हा ही बच पाये थे। ब्राह्राा भी वीर गति को प्राप्त हुआ और उसकी नयी नवेली बेलवा अपने पति के शव के साथ जल के मर गयी। ‘आल्हा’ गायक निम्न पंक्तियां बड़े दुःख के साथ गाता हू-

सावन सारी सोनवा पहिरे,
चैड़ा भदई गंग नहाइ।
चढ़ी जवानी ब्रहा्रा जूझे
बेलवा लेइ के सती होइ जाइ।
(सावन में सोना साड़ी पहनती थी, चैड़ा भादों मंे गंगा नहाता था। चढ़ती जवानी में ब्रहा्रा जूझ जाता है और उसे लेकर बेलवा सती हो जाती है।)
मलखान

बच्छराज के जेठे पुत्र का नाम मलखान था। यह बड़ा ही शक्तिशाली था। कहते ह कि यह जिस रथ पर सवारी करता था उसमंे 17 घोड़े जोते जाते थे। उस समय उसके दोनों जंघे पर सौ-सौमन क लम्बे-लम्बे लोहे के खम्भे खड़े कर दिये जाते थे। इनकी संख्या दो होती थी और वह युद्ध में इन्हीं से वार किया करता था। रथ के भार से भूमि नीचे बैठ जाया करती थी। युद्ध में इनका रथ सबसे पीछे रख्चाा जाता था। इनके प्रताप को आल्हा की दो पंक्तियां बताती है-

लूझि लगावन के डेरिया हो,
खंभा टेकन के मलखान।
(झगड़ा लगाने के लिए डेरिया और मुर्चा लेने के लिए मलखान था)

मलखान का ब्याह पानीपत के महाराज मधुकर सिंह की कन्या जगमोहन से हुआ था। इस ब्याह में भी महोबी वीरां को खूब लड़ाई लड़नी पड़ी थी। जगमोहन का भाई नवमंडल इतना योद्धा था कि महोबियों की हिम्मत रह-रह के छूट जाती थी। स्वयं ऊदल कई बार मूर्छित हो उठा था। नवमंडल के प्रति आल्हा की चार पंक्तियां इस प्रकार हैं-

नौ मन तेगा नउमंडल के,
साढ़े असी मने कै साँग
जो दिन चमकै जरासिंध में
क्षत्रों छोड़ि धरैं हथियार ।
(नवमंडल का नौ मन का तेगा और साढ़े अस्सी मन की साॅग थी। जिस दिन जरासिंध क्षेत्र में वे चमक जाते थे क्षत्री अपना अपना हथियार डाल देते थे।)

मलखान उसक मोर्चा थाम सका। वरदान के कारण पाँवांे के तलवे को छोड़ उसकी सारी शरीर अष्टधातु की हो गयी थी। उसके शरीर से किसी प्रकार का वार होने पर आग की चिनगारियां निकलने लगती थी। इसकी मृत्यु तभी हुई जब कि धोखे मंे जगमोहन ने बैरी को अपने पति के तलवे में प्राण रहने की बात बता दी।
सुलखान

सुलखान आल्हा में अंगद के नाम से गाया गया है। यह मलखान का छोटा भाई था। युद्ध काल में मलखान के रथ को यही हाॅकता था। मलखान के पराक्रम का श्रेय इसी को है। रथ को लेकर अभी आकाश मंे उड़ जाता था तो कभी बैरियों के दल में कूद पड़ता था। कही-कहीं इसे भगवान कृष्ण की भी संज्ञा मिली है। इसके अतिरिक्त उसे युद्ध कला का भी अच्छा ज्ञान था।
जगनी

जिस दल का सम्पूर्ण जीवन ही युद्धमय रहा उसमें एक कुशल दूत का होना भी आवश्यक था। ऐसे कार्यो के लिए जगनी अपने दल में आवश्यकता पड़ने पर यह सन्द्रश पहुंँचाया करता था। आल्हा मंे इसके लिए धावनि (दूत) शब्द का भी प्रयोग किया गया है। इसकी चाल घोड़े से भी कई गुने तेज थी। दूसरे के मन की बातें जान लेना था और भविष्य की बातें भी बता देता था। राह में चलते हुए यदि महोबी वीर कहीं युद्ध में फँस जाते थे तो राज्य में खबर ले जाने का कार्य जगनी को ही सांैपा जाता था।
सुखेना

तेलो सुखेना तलरी गढ़ के
जे घटकच्छे कइ अवतार।
(सुखेना जाति का तेली और तिलरी गढ़ का रहने वाला तथा घटोत्कच्छ का अवतार था।)

सबसे बड़ी बात यह थी जो उसे 12 जादू और 16 मोहिनी का अच्छा ज्ञान था। उस समय जादू की भी लड़ाई हुआ करती थी। आल्हा की पत्नी सोनिवां भी जादू में माहिर थी।ऐसे समय में सुखेना का रहना आवश्यक था। इसने कई बार अपने दल को दुश्मनों द्वारा चलाये गये जादू से मुक्त किया था।
डेरिया

डेरिया ऊदल का सच्चा साथी, जाति का ब्राहा्रण था। पेचेदे मामलों से इसकी सूझ-बूझ सर्वथा ग्रहणीय होती थी। यह एक अनोखा जासूस था, जिसे बावनों किलो का भेद भली-भांति मालूम था। ऊदल की तरह यह उदकी नही था बल्कि बहुत सोच-समझ कर कदम उठाता था। इसके लिए कभी-कभी ऊदल नाराज भी हो जाता था। कुछ आल्हा गायक डेरिया के लिए ढेवा षब्द का भी प्रयोग करते है। परन्तु डेरिया और ढेबा दो सगे भाई थे जो पियरी के राजा भीखम तेवारी के लड़के थे। एक दिन दोनों पिता से आज्ञा ले विदेष को निकल पड़े । कुछ दूर आकर दोनों, जान-बूझकर दो रास्ते पर हो लिये। इसप्रकार डेरिया महोबा पहुंचा और ढेबा लोहगाजर। डेरिया हंशा नामक घोड़े पर सवारी करता था जो इन्द्र के घोड़े मंे से एक था। इसे डेरिइया भी कहा जाता है। ऊदल को डेरिया पर गर्व था। संकटकाल मंे वह इसीको पकाराता था। यह देवो का परम भक्त था और देवी इसे इष्ट भी थी।
लाखन

महोबे की बढ़ती हुई धाक देख जहां दूसरे राजा जलते थे वही लाखन एक राजा होते हुए भी महोबे की ओर से लड़ता था। यह कन्नौज के महाराज जयचंद्र का लड़का था। इसकी 160 रानियाँ थी। ऊदल से इसकी मित्रता हो गयी थी और उसी के साथ महोबे केू लिए सदा लड़ता रहा सी मंे उसकी मृत्यु भी हो गयी। ऊदल के साथ-साथ रहने से आल्हा की पंक्तियों में भी दोनों के साथ साथ समेटा गया है। नीचे की दो पंक्तियां इसकी वीरता मंे तथा ऊदल की सहचारिता मे कम नही होगी-

लाखन लोहवा से भुइ हालै,
अउ उदले से दऊ डेराइं।
(लाखन के लोहेग से पृथ्वी दहल जाती थी और ऊदल से तो परमात्मा ही डरते है।)
सैयद

वृद्धावस्था में कुशलता से युद्ध में जुझाने वाला सैयद ही था। इसका पूरा नाम बुढ़वा सैयद ही था। इसका पूरा नाम बुढ़वा सैयद था और यह वाराणसी का रहने वाला था। इसे महोबे का मन्त्री कहा गया है और अन्यान्य स्थलों पर इसकी सूझ-बूझ एवं मन्त्रणा से महोबे एवं महोबियों की काफी रक्षा हुई।
भगोला और रूपा

(अहिर भगोला भागलपुर के) यह भागलपुर का एक अहीर था। इसकी शारीरिक शक्ति का ‘आल्हा’ में खूब बखान किया गया है। कहते है कि युद्ध में यह मोटे-मोटे पेड़ उखाड़ कर लड़ता था। इससे डर कर कितने बैरी भाग भी जाते थे। रूपा जाति का बारी था। युद्ध-निमन्त्रण की चिट्ठियाँ यही पहुँचाया करता था। अतः पहला मोर्चा भी इसी को लेना पड़ता था। इससे वह बैरियों की शक्ति भी सहज ही आजमा लेता था। उक्त बारहों वीरों के पराक्रम का परिणाम जो हुआ कुछ अंश में निम्न पक्तियाँ बताती हैं, जिन्हें ऊदल ने ही अपने मुख से कहा है-

पूरब ताका पुर पाटन लगि
और पश्चिम तकि विन्द पहार,
हिरिक बनारस तकि तोरा धइ
केउना जोड़ी मोर देखान।

अन्तः आल्हा तो अमर माने जाते है शेष सभी वीरों का अन्त ब्रहा्रा के गौने में पृथ्वीराज के प्रतापी पुत्र चैड़ा के हाथ हुआ। चैड़ा के हाथ इनकी मृत्यु भी लिखी थी, आल्हा मंे ऐसा गाया जाता है।

Friday, August 19, 2011

बुंदेलखंड पैकेज को लेकर राज्यसभा में हंगामा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। बदहाली के शिकार बुंदेलखंड पर उत्तर प्रदेश और केंद्र का झगड़ा राज्यसभा में भी गूंजा। बसपा और कांग्रेस आपस में भिड़ गई। बसपा ने कहा कि विशेष पैकेज के तहत उसका पूरा धन 'अतिरिक्त केंद्रीय सहायता' के रूप में मिलना चाहिए। उसने केंद्र सरकार पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया। सरकार ने स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की तो बसपा और भाजपा सदस्यों ने इतना हंगामा मचाया कि प्रश्नकाल तय समय से पहले ही खत्म करना पड़ गया।

बसपा के गंगाचरण राजपूत ने गुरुवार को राज्यसभा में बुंदेलखंड को केंद्र से मिले विशेष पैकेज का मामला प्रश्नकाल में उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार ने वर्ष 2009 में बुंदेलखंड के लिए 7266 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज का एलान तो कर दिया, लेकिन दे नहीं रही है। पैकेज में से 3506 करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड को व 3760 करोड़ रुपये मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड को मिलने थे। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने 200 करोड़ रुपये अलग से देने की घोषणा की थी। सरकार से अभी तक उत्तर प्रदेश को सिर्फ 1696 करोड़ व मध्य प्रदेश को 1954 करोड़ रुपये केंद्रीय अतिरिक्त सहायता के रूप में मिल सके हैं। बाकी धन को उसने चल रही विभिन्न योजनाओं के मद में डाल दिया है। सरकार साफ बताए कि पैकेज का पूरा धन वह केंद्रीय अतिरिक्त सहायता के मद में देगी या नहीं?

योजना राज्यमंत्री अश्विनी कुमार ने जवाब में कहा कि सिर्फ केंद्रीय अतिरिक्त सहायता को ही विशेष पैकेज नहीं माना जाना चाहिए। मंत्री के इतना कहते ही बसपा सदस्य अपनी जगहों पर खड़े होकर विरोध करने लगे। उसी बीच भाजपा के विनय कटियार, कलराज मिश्र और दूसरे सदस्य भी सरकार का विरोध करने लगे। शोर-शराबे के बीच ही गंगाचरण राजपूत ने सरकार से बुंदेलखंड में उद्योगों को लगाने के लिए उत्पाद शुल्क व आयकर में छूट दिए जाने के लिए सरकार के रुख के बारे में दूसरा प्रश्न पूछा। लेकिन हंगामे के चलते सरकार की तरफ से जवाब नहीं आ सका। सभापति मुहम्मद हामिद अंसारी ने सदस्यों को शांत कराने व प्रश्नकाल जारी रखने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। हंगामा न थमते देख सभापति ने सदन की कार्यवाही 12 बजे तक स्थगित कर दी। उस समय प्रश्नकाल में लगभग सात मिनट बाकी थे।

मनमाने तरीके से खर्च

हो रहा पैकेज का धन

नई दिल्ली [जाब्यू]। बुंदेलखंड पैकेज का धन मिलने में देरी को लेकर उत्तर प्रदेश को केंद्र से शिकायतें भले ही हों, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि वहां परियोजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो रहा है। ठेकेदारों को मनमाने तरीके से भी काम दिए गए हैं। टेंडर की प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में है। घटिया काम कराए गए हैं। यहां तक कि पेयजल के लिए हैंडपंप वहां नहीं लगाए गए, जहां लगने चाहिए थे।

केंद्रीय योजना राज्यमंत्री अश्विनी कुमार ने गुरुवार को राज्यसभा को बताया कि केंद्र को मिली इन शिकायतों को जरूरी कार्रवाई के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों को भेज दिया गया है। इसके अलावा योजनाओं की प्रगति की मॉनीटरिंग योजना आयोग की निगरानी समिति भी कर रही है। जिसमें दोनों राज्यों के मुख्यसचिव व संबंधित विभागों के अधिकारी शामिल हैं।

Wednesday, August 10, 2011

बुंदेलखंड में भरोसे की चक्की में पिसते किसान

भरोसे की चक्की में पिसते किसान
प्रणव सिरोही / बांदा August 09, 2011
पैकेज के बावजूद बुंदेलखंड में किसानों की आत्महत्या के मामलों में कमी नहीं आ रही है। पिछले पांच महीनों में ही किसानों की आत्महत्या के लगभग 520 मामले सामने आए हैं। सूखे के दुष्चक्र, नकली बीजों के फेर, फसल बीमा के फायदे से महरूम, कर्ज की मार में फंसे किसान जिंदगी से हार मानते दिख रहे हैं। बांदा के सांसद आर के सिंह पटेल कहते हैं, 'पैकेज का नियोजन सही तरीके से नहीं किया गया है। इसे उन लोगों ने तैयार किया है, जिनका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं हैं।Ó हालांकि इस साल यहां कुछ बेहतर बारिश हुई है लेकिन वह भी नाकाफी मालूम पड़ती है। पैकेज के बाद भी सिंचाई की सुविधाओं में खास फायदा नहीं हुआ है। इस इलाके में धान उगाने के लिए 1,400 रुपये और गेहूं उगाने के लिए 1,500 रुपये प्रति क्विंटल तक की लागत आती है। लागत भी वसूल न हो पाने पर परेशान किसान भला और क्या करेगा?
पैकेज के तहत किसानों को मुफ्त बीज और खाद की व्यवस्था भी की गई है। लेकिन पिछले वर्ष कई ऐसे बीज बांट दिए गए जिनसे फसल ही नहीं उगी। किसान आसा राम बताते हैं कि वे 'पेटेंटÓ बीज थे, जिनसे दोबारा फसल नहीं हो पाती क्योंकि उनसे फसल पहले ही ली जा चुकी थी। जब कोहराम मचा तो प्रशासन ने कुछ कार्यवाही का भरोसा जताया लेकिन फसल बीमा के नाम पर भी किसानों को कोई राहत नहीं मिली क्योंकि केवल प्राकृतिक आपदा की स्थिति में ही यह लाभ मिलता है।
पाले से नष्टï हुई दलहन फसलों के मामले में भी ऐसा ही हुआ। तब भी किसान मुआवजे से महरूम रह गए। हालांकि किसानों के लिए एक अच्छी है कि पाले को भी जल्द ही प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में लिया जा सकता है और कृषि मंत्री शरद पवार इस मसले को कैबिनेट की मंजूरी दिलाने की कोशिशों में लगे हैं। किसान क्रेडिट कार्ड का भी कोई फायदा नहीं नजर आ रहा है। आमदनी नहीं होने के कारण कर्ज अदा नहीं हो पाता ऐसे में किसान को जमीन ही गंवानी पड़ती है। पटेल कहते हैं, 'पैकेज में मंडियों के निर्माण के लिए भारी खर्च किया जा रहा है जबकि उत्पादकता बढ़ाने पर कोई जोर नहीं हैं। जब उत्पादन नहीं होगा तो मंडियां कैसे गुलजार होंगी। किसानों को जब तक सीधे मदद नहीं मिलेगी, तो उनका भला नहीं होगा।