यहां के लोग इस फसल को बाबा कह रहे हैं। दरअसल बुंदेलखंड में जिसके आगे-पीछे कोई नहीं होता है उसे 'बाबा' कहा जाता है। फसल की खेत में हर तरफ नजर आने वाली घास है, इसलिए ये फसल बाबा है। इस नकली फसल को सिर्फ जानवर खा सकते हैं। किसानों ने फसल लगाई थी उरद की दाल की। जिसमें सिवाय पत्तों के कुछ नहीं हुआ। किसानों ने ये बीज सहकारिता विभाग से खरीदे थे, किसानों ने अब इस बीज का नाम नामर्द दिया है और फसलों को बाबा। किसानों की मानें तो सरकारी एग्रीकल्चर विभाग वालों ने भरोसा दिलाया था कि इस बीज से फसल 40 से 50 गुना ज्यादा होगी। इसलिए किसानों ने अपना देशी बीज नहीं बोया। कर्ज लेकर सरकारी बीज बोया और बदले में ये घास लहलहा रहे हैं।
इस ठगी के खिलाफ सैंकड़ों किसानों ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। किसानों की मांग है कि यूपी सरकार से इन्हें मुआवजा दे। सरकार ने किसानों के साथ धोखा किया है। इनका तर्क है कि इन्होंने कृषि विभाग से बीज लिया था, जो नपुंसक है। किसान नेताओं का कहना है कि अगर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो किसान आंदोलन को और आगे बढ़ाया जाएगा। राष्ट्रीय नेतृत्व की अगुवाई में पूरे प्रेदश औऱ देश में आंदोलन चलाया जाएगा।
केसीसी यानी किसान क्रेडिट कार्ड। इसके जरिए किसान कर्ज ले सकता है और फसलों की बीमा भी होती है। लेकिन बीमा की रकम तभी मिलती है जब कोई प्राकृतिक आपदा आई हो। बीमा कंपनी धोखे की लहलहाती फसल को आपदा नहीं मानती। भले ही फसल में दाने हों या न हों। सरकारी अफसर मान चुके हैं कि ये आपदा नहीं है और वो ये भी जानते हैं कि बीमा के नाम पर किसानों को कुछ नहीं मिलने वाला। हालांकि ललितपुर के डीएम किसानों की परेशानी को समझ रहे हैं और किसानों की बात सरकार तक पहुंचाने का भरोसा भी दे रहे हैं।
बीज की धोखेबाजी की घटना ने देश के इकलौते इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पल्स रिसर्च के वैज्ञानिकों के भी कान खड़े कर दिए। धोखेबाजी का ये खेल कितना बड़ा है ये जानना भी जरूरी है। अरहर की दाल महंगी होने के बाद नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत तैयार की गई ए थ्री पी योजना, यानी एक्सिलरेटेड पल्स प्रोडक्शन प्रोग्राम। इसमे तय किया गया कि देश को दालों के आयात से बचाना चाहिए। इसके लिए दाल के ऐसे बीज बनाने की योजना बनी जो देश में ही पैदा हों। देश में ही बोए जाएं ताकि देश में दालों की कोई कमी न रहे। योजना के तहत बीज बोने और बांटने में आने वाले खर्च में केंद्र सरकार प्रदेश सरकार के महकमों को देगी 75 फीसदी सब्सिडी। ए थ्री पी के तहत पैदा किए गए उरद की दाल के इस बीज का नाम है आजाद-वन। इसमें आम बीज की अपेक्षा 40 गुना फसल पैदा करने की ताकत का दावा किया गया।
देश में उरद की दाल पैदा करने में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश अव्वल है। यूपी में उरद की फसल का बड़ा केंद्र ललितपुर है। आजाद-वन नाम का बीज कृषि विभाग के गोदामों के जरिए किसानों को बांटा गया। प्रादेशिक कॉपरेटिव सोसाइटी के भंडारों से बीज का वितरण हुआ। बीज को प्रामणित किया उत्तर प्रदेश बीज प्रामाणिकरण संस्थान ने। एक हेक्टेयर में करीब 15 किलो बीज की खपत है। बीज 80 रुपये किलो बिकी, जिसमें किसानों को मिली 12 रुपये की छूट। ये फसल 90 दिनों की है जो 15 जुलाई को बोई गई और 15 अक्टूबर तक काटी जानी है। इस हिसाब से अब तक फसल में फूल बन जाते और फल की शक्ल में फलियां आने लगतीं। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं।
पीसीएफ के जीएम की मानें तो बुंदेलखंड के जालौन और उरई में 100 क्विंटल, झांसी में 100, ललितपुर में 300, हमीरपुर में 50, महोबा में 50, बांदा में 200, आगरा में 20, सीतापुर में 100, फतेहपुर में 100 और बाराबंकी में 50 क्विंटल यही दगाबाज बीज यानी आजाद वन की सप्लाई हुई। अब जब जगह-जगह से इस धोखे की हकीकत सामने आने लगी है। जिसके बाद डीएनए और दूसरे टेस्ट की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
आईबीएन-7
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