केंद्रीय बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का गठन करने से यदि बुंदेलखंड का विकास होगा तो सवाल यह है कि इससे पहले राज्य सरकार ने जो प्राधिकरण बनाया था उसने विकास क्यों नहीं किया? और इससे भी अहम सवाल यह है कि यदि प्राधिकरण के गठन से विकास संभव है तो पृथक बुंदेलखंड राज्य के निर्माण का मामला क्यों उठाया जा रहा है
सागर (संजय करीर/डेली हिंदी न्यूज़)। विकास के नाम पर राज्यों का विभाजन करने की अवधारणा का प्रचार करने वाली भारतीय जनता पार्टी और अब अपने निहितार्थों के चलते उसे इस मुद्दे पर घेरने का प्रयास कर रही कांग्रेस, दोनों के नेताओं को ही इस अवधारणा का आधार और सच्चाई के बारे में जानकारी नहीं है। पंजाब और हरियाणा या हिमाचल की मिसाल देकर छोटे राज्यों में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले नेता शायद पूर्वोत्तर के सभी सातों छोटे राज्यों को भूल जाते हैं। वे नवगठित छत्तीसगढ़ की दुर्दशा भी भूल जाते हैं। उन्हें इसका मतलब ही समझ नहीं आता कि आखिर विकास की अवधारणा क्या है?क्या पृथक बुंदेलखंड राज्य बनना चाहिए? इस मामले में आप क्या सोचते हैं … टिप्पणी लिखकर अपनी राय से अवगत करायें
पुरानी पुस्तकों में वर्णित बुंदेलखंड तो काफी बड़ा प्रदेश था। इस समय जिस पृथक बुंदेलखंड राज्य को लेकर सुगबुगाहट चल रही है उसमें यूपी के सात जिले झांसी, ललितपुर, बांदा, महोबा, जालौन, हमीरपुर व चित्रकूट और एमपी के छह जिले सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ और दतिया को शामिल किया गया है।राहुल गांधी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से मिलने वाले कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने जो ज्ञापन प्रधानमंत्री को सौंपा था उसमें कहा गया था कि बुंदेलखंड में 70.8 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पठारी एवं मैदानी है जिसमें ग्रेनाइट पत्थर के पहाउ़ और राखड़ मिट्टी की बहुतायत है। यूपी वाले हिससे में केवल 8.8 प्रतिशत और एमपी वाले हिस्से में करीब 26.7 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यह कुल भूभाग का करीब 21.4 प्रतिशत है। इसमें से 60 प्रतिशत वनक्षेत्र कम घना है।
यूपी वाले हिस्से के सात जिलों में करीब 80 लाख की आबादी रहती है जबकि एमपी वाले हिस्से के छह जिलों में करीब 75 लाख लोगों की आबादी है। दोनों ही ओर के बुंदेलखंड में लोगों के रोजगार का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। पूरे इलाके में केवल 50 प्रतिशत जमीन कृषि योग्य है जबकि शेष अन्य उपयोग वाली और बंजर परती जमीन है। पशुपालन, वनोपज वितरण और कुछ अन्य मजदूरी जैसे कामों के अलावा लोगों के पास कोई और रोजगार का साधन नहीं है।
सबसे अहम बात यह है कि इस पूरे इलाके में एक भी बिजलीघर नहीं है। कोई बड़ा उद्योग या कारखाना नहीं है। शैक्षणिक संस्थानों के नाम पर सागर में डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय यूनिवर्सिटी और झांसी का बुंदेलखंड विश्वविद्यालय हैं। झांसी में एक मेडिकल कॉलेज पहले से ही है और सागर में एक अभी बन रहा है।
तो एक संसाधनविहीन राज्य जहां न रोजगार के अवसर हैं, न उद्योग धंधे, न शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं हैं न बिजली, न पानी…. (हां पानी भी नहीं क्योंकि यह सूखे की राजनीति का परिणाम ही तो है) उसे अलग से बनाने के लिए पूरी राजनीति की जा रही है। तो साफ है कि नया राज्य बना तो एक-एक यूनिट बिजली के लिए मप्र, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश का मुंह ताकना होगा। पानी के लिए लोग एक दूसरे से लड़ेंगे और क्षेत्र में अशांति व अराजकता फैलेगी।
वास्तव में जो लोग केंद्रीय बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के गठन को लेकर इतने बेचैन हैं वे विकास को लेकर कतई चिंतित नहीं हैं। 8 हजार करोड़ रुपए का पैकेज केंद्र सरकार से मांगा गया है उसमें से मप्र के हिस्से वाले बुंदेलखंड के छह जिलों के लिए 4310 करोड़ रुपए और उत्तर प्रदेश के सात जिलों के लिए 3866 करोड़ रुपए मिलने हैं।
कांग्रेस नेताओं की नजर इसी पर लगी है क्यों कि दोनों ही राज्यों में उसकी सरकार नहीं है। केंद्र से आने वाला यह पैसा खर्च कर जनता के सामने उसका श्रेय भाजपा और बसपा को नहीं मिले, कांग्रेस को इसी बात की चिंता है।
जानकारों का कहना है कि यदि दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें होतीं तो शायद कभी केंद्रीय प्राधिकरण बनाने की बात भी नहीं उठती। या कम से कम एक राज्य में भी कांग्रेस की सरकार होती तो ऐसे सिकी प्राधिकरण को बनाने का सवाल ही नहीं था। अभी भी प्राधिकरण गठन करने का अगला कदम नए राज्य का गठन ही है। स्वयं कांग्रसी नेता यह स्वीकार कर रहे हैं और उन्होंने इसका संकेत भी दिया है।
छोटे राज्यों का जल्दी विकास होता है यह बात एक अर्धसत्य है। छत्तीसगढ़ का विकास नहीं हुआ बल्कि वह अब एक नक्सलवाद से प्रभावित राज्य बनकर रह गया है जहां की सरकार का पूरा समय, शक्ति और धन अब इस समस्या से निपटले में जाया हो रही है। बुंदेलखंड में ऐसी कोई समस्या नहीं है लेकिन बेरोजगारी और अशिक्षा के कारण सौ समस्याएं जन्म लेंगीं।
यि सचमुच इस क्षेत्र का विकास करना है तो इसके लिए नया राज्य बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। उद्योग-धंधे, बिजलीघर, बांध, सिंचाई योजनाएं बनाकर भी यह लक्ष्य पाया जा सकता है। यदि अंतिम लक्ष्य विकास करना है तो नए राज्य का गठन कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि सभी दलों की नजर कुछ और नए पदों की गुंजायश निकालने पर लगी है।
इस इलाके की खनिज संपदा को लेकर बहुत दुहाई दी जाती है लेकिन क्या गांरटी है उससे समृद्धि आएगी। भाजपा अक्सर जैसा आरोप लगाती है कि केंद्र मप्र के हिस्से की रायल्टी खा जाता है कोयला नहीं देता, तो इस बात की पूरी संभावना है कि बुंदेलखंड के साथ भी यही होगा।
ऐसे कई और मुद्दों पर विस्तार से जानकारी देने का यह सिलसिला जारी रहेगा।
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