should bundelkhand become separate State vote and give your opinion on http://www.bundelkhanddarshan.com/ Pramod Rawat Tikamgarh
Wednesday, October 6, 2010
प्रधानों के आगे फीकी पड़ रही है महानगरों की चमक-दमक
बांदा जिले महुआ किवास खण्ड के अन्तर्गत पनगार सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है जहां ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा हैं। पनगरा ग्राम पंचायत विभिन्न पदों के आरक्षण के अनुसार अनुसूचित जाति महिला के लिये आरक्षित है जिसमें गॉव मे स्थायी रहने वाले लोगों के अलावा कई ऐसे उम्मीदवार अपनी-अपनी पित्नयों को खड़ा किये है जो वशोZ से दिल्ली, पंजाब और सूरत में रोजी रोटी कमाने के लिये गये थे और वही बस गये।
पनगरा ग्राम पंचायत में पहले चरण में होने वाले चुनाव के लिये कुल 22 महिलायें प्रधान पद की उम्मीदवार है जिसमें सबसे अधिक 8 प्रत्याशी चमार बिरादरी क है, 6-6 प्रत्याशी कोरी और धोबी बिरादरी के तथा 2 प्रत्याशी वाल्मीक समाज के है। इनमें सबसे अधिक संघशZ कोरी विरादरी में है। दसियों साल से दिल्ली में सपरिवार रहने वाले रामेश्वर कोरी विरादरी के ही है जो चुनाव लड़ने के लिये बच्चों सहित आ गये है और प्रधान पद के लिये अपत्नी को उम्मीदवार बना दिया हैं। ओमप्रकाश उर्फ मुन्ना पनगरा के चलते पुर्जा और समाज में अच्छी पैठ रखने वाले बाकर का नाती है जो कानपुर, बम्बई, सूरत घूमता रहा है और चुनाव के आकशZण में गॉव आ गया है।
कोरी बिरादरी को ब्राहा्रण समाज का समर्थन मिलने के कारण नत्थू की पत्नी सुन्दी की स्थिति काफी सुदृढ़ दिखायी देती है जो `बाकर´ के छोटे भाई जमुना प्रसाद का लड़का है। अन्य उम्मीदवारों में िशवप्रसाद पुत्र रामटहलू (बाकर के बहिने के नाती) रामकिशुन बाकर के अन्य बहिन के लड़के के दमाद तथा कल्लू की पत्नी चुनाव मैदान में है ये सभी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे है।
केंद्र से आई राशि का दुरूपयोग हो रहा है: राहुल गांधी
गांधी ने यहां पत्रकारों से कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बुंदेलखंड के विकास के लिए विशेष पैकेज देने के अलावा अनेक योजनाओं के तहत इस राज्य में पैसा भेजा जा रहा है। लेकिन उसका सदुपयोग नहीं हो पा रहा है।
उन्होंने कहा कि यह स्थिति ठीक नहीं है। युवा नेता ने कहा कि बुंदेलखंड अंचल का दौरा करने के बाद उन्होंने पाया कि यह अंचल काफी पिछड़ा हुआ है। इसके संबंध में उन्होंने केंद्र सरकार से चर्चा की और फिर विशेष पैकेज स्वीकृत हुआ था। हालाकि उन्होंने जांच के लिए कमेटी के गठन के संबंध में विस्तार से जानकारी नहीं दी।
कांग्रेस संगठन से जुडे सवालों के जवाब वह टाल गए और उन्होंने कहा कि उनका काम सिर्फ भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) और भारतीय युवा कांग्रेस से संबंधित काम देखना है। वह उन्हीं पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
अपनी तीन दिन की यात्रा के दौरान कार्यकर्ताओं को चमचागिरी नहीं करने की नसीहत देने संबंधी सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि यह बात भी उन्होंने युवा कांग्रेस के परिप्रेक्ष्य में कही है। गांधी ने दावा करते हुए कहा कि एनएसयूआई और भारतीय युवा कांग्रेस के चुनाव पूर्ण पारदर्शिता के साथ हो रहे हैं और इसमें पूर्ण आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनायी जा रही है।
शेष राज्यों में भी युवा कांग्रेस के चुनाव जल्दी पूरे हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि ऎसा किसी राजनीतिक दल में पहली बार हो रहा है कि पूर्ण पारदर्शिता के साथ चुनाव हो रहे हैं और ऊपर से किसी नेता को थोपा नहीं जा रहा है।
राहुल गांधी ने कहा कि बुंदेलखंड में सामंतवाद है सबसे बड़ी अड़चन
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गांधी राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण के स्टेडियम में दलित युवा नेतृत्व विकास सम्मेलन में युवाओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनीति में बदलाव के लिए देश को युवाओं की जरूरत है इसलिए मध्यप्रदेश के युवाओं से भी आग्रह है कि वे कांग्रेस के सदस्य बन कर इस आंदोलन से जुडे़। उन्होने युवक कांग्रेस के चुनाव की पूरी प्रक्रिया युवाओं को समझाई। राज्य में युवा कांग्रेस के सदस्यता अभियान को गति देने के उद्देश्य से आए गांधी ने कहा कि युवाओं को अपनी क्षमता दिखानी होगी। उन्हें अपने क्षेत्र में बेहतर काम करना होगा। पार्टी स्तर पर वह इसका ईमानदारी से आकलन कराएंगे और हुनरवान युवाओं को आगे बढा़या जाएगा। गांधी ने कहा कि युवा कांग्रेस संगठन चुनाव में आपराधिक तत्वों को भी कोई स्थान नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अनेक राज्यों में चुनाव हो चुके हैं और गड़बड़ियों तथा फर्जी प्रमाणपत्र पेश करने की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए उन पर कार्रवाई की गई है। गुटबाजी से हारे-राहुल गांधी ने कहा कि मध्यप्रदेश कांग्रेस का हमेशा गढ़ रहा है। यहां हार का कारण कांग्रेस की आपसी गुटबाजी है। यदि आपस में लड़े तो हमेशा ही इसका लाभ अन्य पार्टी को मिलेगा। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि कांग्रेस में भितरघात करने वाले नेता और कार्यकर्ताओं को कोई जगह नहीं दी जाएगी। पार्टी सूत्रों के अनुसार दरअसल बुंदेलखंड अंचल से आए युवाओं ने राज्य के कांग्रेस संगठन में व्याप्त कथित गुटबाजी और राजनीति में आपराधिक तत्वों के हावी होने संबंधी सवाल उठाए थे। गांधी ने कहा कि चुनावों के दौरान मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी भी कराई जा रही है। यदि कोई गड़बडी़ करता हुआ पाया गया तो उसके खिलाफ कार्रवाई भी होगी। राहुल के सामने उभरी गुटबाजी-दरअसल संवाद के दौरान ही एनएसयुआई के पूर्व प्रदेश सचिव राहुल तिवारी ने पार्टी के स्थानीय बड़े नेताओं के द्वारा उन्हें काम नहीं करने देने, और झूठे पुलिस केस में फंसाने का आरोप लगाया। इस पर दूसरे गुट के युवा खड़े हो गए और राहुल पर सामने ही झूठा आरोप लगाने की बात कहने लगे। दोनों तरफ से युवाओं के खड़े होकर शोर-शराबा करने पर राहुल गांधी मंच से उठे और अग्रिम पंक्ति में बैठे युवाओं से हाथ मिलते हुए कार्यक्रम स्थल छोड़कर चले गए। बुंदेलखंड में सामंतवाद है सबसे बड़ी अड़चन-राहुल गांधी ने कहा कि बुंदेलखंड में सामंतवाद का बोलबाला होने के कारण उपेक्षित वर्ग की बात उन तक नहीं पहुंचती थी। इसी वजह से वे सीधा संवाद स्थापित करने के लिए यहां आए हैं। अब कोई वाद नहीं चलेगा। गांधी ने कहा कि पहले संगठन पर ताकतवर नेताओं की सिफारिशों से लोगों को पद दिए जाते थे। इससे दलित वर्ग की बात उच्च स्तर तक नहीं पहुंचती थी। काम के आधार पर किसी की सिफारिश के बगैर पद दिए जाएंगे। कार्यकर्ता की योग्यता ही उसका भविष्य तय करेगी। भितरघात करने वालों की अब खैर नहीं- सोमवार को दोपहर करीब 12.10 बजे राहुल गांधी टीकमगढ़ पहुंचे। नारायणदास खरे स्टेडियम में आदिवासी युवाओं से करीब 25 मिनट तक बातचीत की। इसके बाद वे युवा कांग्रेस के मंच पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि भितरघात करने वालों को पांच मिनट में ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। उमा को हराना बड़ी बात नहीं -विधानसभा चुनाव में उमा भारती को हराने की शेखी बघार रहे एक कार्यकर्ता को राहुल गांधी की फटकार का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि उमा भारती को हराना कोई बड़ी बात नहीं है। यदि युवा कांग्रेस एकजुट होकर खड़ी हो जाए तो प्रदेश में भाजपा सरकार को उखाड़ फेंका जा सकता है। नेताओं को नहीं मिली इंट्री -राहुल गांधी के दोनों कार्यक्रमों में स्वागत-सम्मान की कोई औपचारिकताएं नहीं हुईं। श्री गांधी मंच पर रखीं सामान्य फाइवर कुर्सियों पर बैठे और सीधा संवाद शुरू किया। श्री गांधी के साथ आए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी अनुसूचित जाति के कार्यक्रम स्थल तक पहुंचे। यहां वे मंच पर बैठे रहे पर कुछ नहीं बोले। इसके अलावा किसी भी नेता को कार्यक्रमों में प्रवेश नहीं मिला। युकां के कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष को भी इंट्री नहीं मिली। राहुल गांधी के साथ राष्ट्रीय युकां अध्यक्ष राजीव साटव, सचिव जीतेंद्र सिंह बघेल मौजूद रहे। पैकेज का दुरुपयोग का आरोप -राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने अपने पिछले दौरे के अनुभवों के आधार पर केंद्र सरकार से बुंदेलखंड के लिए विशेष पैकेज दिलाया है। लेकिन प्रदेश सरकार पैकेज में मिली राशि का दुरुपयोग कर रही है। इसलिए इस राशि के सदुपयोग के लिए हमें प्रदेश सरकार को उखाड़ फेंकना होगा। उड़द की फसल चौपट होने की जानकारी दी -हैलीपेड पर राहुल गांधी का स्वागत करने पहुंचे पूरे संभाग के करीब दो दर्जन कांग्रेस नेताओं को उनके आने और जाने पर सिर्फ हाथ मिलाने और अपना परिचय देने का ही मौका मिल सका। इसी दौरान युकां अध्यक्ष नवीन साहू, प्रकाश दांगी और प्रियंका घुवारा ने श्री गांधी को जिले में नकली उड़द बीज किसानों को दिए जाने के कारण किसानों को हुए नुकसान के संबंध में जानकारी दी। हैलीपेड पर विधायक यादवेंद्र ङ्क्षसह, बृजेंद्र सिंह, अरुणोदय चौबे, गोविंद सिंह, जिलाध्यक्ष रवींद्र अध्वर्यु, जगदीश शुक्ला, विंद्रावन अहिरवार, विश्वजीत सिंह और इसराइल खान, नितिन चतुर्वेदी मौजूद रहे। राहुल की यात्रा से शिवराज को याद आए किसान- कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के बुंदेलखंड की प्रस्तावित यात्रा से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यहां के किसानों की चिंता सताने लगी है। मुख्यमंत्री खुद किसानों की सुध लेने के लिए छतरपुर के घिनोची गांव जा पहुंचे। इस गांव में खराब बीज के कारण किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो गई है। इलाके के चालीस हजार किसान अपनी फसल गंवा चुके हैं। जो बीज ड़ाला गया,उसका पौधा तो दस फीट का हो गया,लेकिन फली नहीं आई। छतरपुर राज्य के बुंदेलखंड इलाके का पिछड़ा हिस्सा है। राहुल गांधी की सोमवार से प्रस्तावित मध्यप्रदेश यात्रा में बुंदेलखंड जाने का कार्यक्रम भी है। यद्यपि राहुल गांधी का छतरपुर जाने का कोई कार्यक्रम नहीं है। वे समीपवर्ती जिला टीकमगढ़ में जा रहे है। लेकिन, मध्यप्रदेश सरकार को यह आशंका जरूर है कि राहुल गांधी छतरपुर भी जा सकते हैं? संभवत: यही वजह है कि मुख्यमंत्री चौहान ने छतरपुर की ओर कूच कर लिया। मुख्यमंत्री सीधे खेत की मेड़ पर पहुंचे। वहीं उन्होंने किसानों से बात की। मुख्यमंत्री के तेवर सख्त थे। उन्होंने उड़द और तिल पैदा करने वाले किसानों की बदहवासी देखी। आधिकारिक जानकारी के अनुसार बुंदेलखंड के इस इलाके में प्रारंभिक तौर पर जो सर्वे किया गया है उसके पाचों जिलों में 2 लाख 60 हजार 300 हेक्टर क्षेत्र में फसल बोई गई है। इससे लगभग 40 हजार कृषक प्रभावित हुये है। केवल छतरपुर जिले में लगभग 20 हजार कृषकों को 6 करोड़ 85 लाख रूपये की हानि होने की संभावना है। किसान पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। सरकार को इस बात की खबर पहले से थी। लेकिन, मुख्यमंत्री के माथे पर बल राहुल गांधी का बुंदेलखंड का कार्यक्रम बनने के बाद आए। मुख्यमंत्री ने किसानों से कहा कि वे परेशान व चिन्तित न हो, उड़द व तिल की फसलों में जो अफलन की स्थिति निर्मित हुई है,उसके दोषी बीज बेचने वाले हैं। जिन संस्थाओं ने गलत बीज दिया है उनके विरूद्व किसान पुलिस थाने में धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कराये। इसके बाद ही राज्य सरकार किसानों के प्रतिनिधि के रूप में उपभोक्ता फोरम में जाकर कानूनी लड़ाई लड़ेगी तथा उनकी फसलों का पूरा-पूरा मुआवजा दिलवायेगी। मुख्यमंत्री ने मौके पर मौजूद पुलिस महानिरीक्षक अन्वेष मंगलम् को निर्देश दिया कि वे यह सुनिश्चित करे कि किसान खराब बीज देने वाली संस्थाओं के विरूद्व थाने में रिपोर्ट लिखवाने के लिये जायें तो उन्हें किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना ना करना पड़े। मुख्यमंत्री को बताया गया कि बीज मध्यप्रदेश सरकार के कृषि विभाग ने भारत सरकार संस्था के माध्यम से खरीदा था। बताया गया कि छतरपुर के अलावा बुंदेलखंड के अन्य जिलों में भी किसान खराब बीज के कारण अपनी फसल गंवा चुके हैं। मुख्यमंत्री ने सागर के संभागायुक्त एस.के.वेद को सभी जिलों में फसल का सर्वेक्षण कराने के निर्देश दिए। संभाग में कुल पांच जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर एवं दमोह हैं। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रभावित किसानों को तत्काल राहत दिलाने के लिये म.प्र. राजस्व पुस्तिका के परिपत्र में संशोधन कर अफलन की स्थिति को प्राकृतिक आपदा घोषित करके तत्काल सहायता राशि प्रदान की जायेगी। |
Monday, October 4, 2010
Ayodhya Hindu Muslim
कहीं मंदिर की परछाई, कहीं मस्जिद का साया है,
न तब पूछा था हमसे, ना अब पूछने आये,
हमें फुर्सत कहाँ, रोटी की गोलाई के चक्कर से,
ना जाने किसका मंदिर है, ना जाने किसकी मस्जिद,
ना जाने किसकी साजिश है, ना जाने किसकी जिद है,
अजब सा सिलसिला है, जाने किसने चलाया है
Wednesday, September 29, 2010
पृथक बुंदेलखंड: सच्चाई यह भी -2
राहुल गांधी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से मिलने वाले कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने जो ज्ञापन प्रधानमंत्री को सौंपा था उसमें कहा गया था कि बुंदेलखंड में 70.8 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पठारी एवं मैदानी है जिसमें ग्रेनाइट पत्थर के पहाउ़ और राखड़ मिट्टी की बहुतायत है। यूपी वाले हिससे में केवल 8.8 प्रतिशत और एमपी वाले हिस्से में करीब 26.7 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यह कुल भूभाग का करीब 21.4 प्रतिशत है। इसमें से 60 प्रतिशत वनक्षेत्र कम घना है।
यूपी वाले हिस्से के सात जिलों में करीब 80 लाख की आबादी रहती है जबकि एमपी वाले हिस्से के छह जिलों में करीब 75 लाख लोगों की आबादी है। दोनों ही ओर के बुंदेलखंड में लोगों के रोजगार का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। पूरे इलाके में केवल 50 प्रतिशत जमीन कृषि योग्य है जबकि शेष अन्य उपयोग वाली और बंजर परती जमीन है। पशुपालन, वनोपज वितरण और कुछ अन्य मजदूरी जैसे कामों के अलावा लोगों के पास कोई और रोजगार का साधन नहीं है।
सबसे अहम बात यह है कि इस पूरे इलाके में एक भी बिजलीघर नहीं है। कोई बड़ा उद्योग या कारखाना नहीं है। शैक्षणिक संस्थानों के नाम पर सागर में डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय यूनिवर्सिटी और झांसी का बुंदेलखंड विश्वविद्यालय हैं। झांसी में एक मेडिकल कॉलेज पहले से ही है और सागर में एक अभी बन रहा है।
तो एक संसाधनविहीन राज्य जहां न रोजगार के अवसर हैं, न उद्योग धंधे, न शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं हैं न बिजली, न पानी…. (हां पानी भी नहीं क्योंकि यह सूखे की राजनीति का परिणाम ही तो है) उसे अलग से बनाने के लिए पूरी राजनीति की जा रही है। तो साफ है कि नया राज्य बना तो एक-एक यूनिट बिजली के लिए मप्र, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश का मुंह ताकना होगा। पानी के लिए लोग एक दूसरे से लड़ेंगे और क्षेत्र में अशांति व अराजकता फैलेगी।
वास्तव में जो लोग केंद्रीय बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के गठन को लेकर इतने बेचैन हैं वे विकास को लेकर कतई चिंतित नहीं हैं। 8 हजार करोड़ रुपए का पैकेज केंद्र सरकार से मांगा गया है उसमें से मप्र के हिस्से वाले बुंदेलखंड के छह जिलों के लिए 4310 करोड़ रुपए और उत्तर प्रदेश के सात जिलों के लिए 3866 करोड़ रुपए मिलने हैं।
कांग्रेस नेताओं की नजर इसी पर लगी है क्यों कि दोनों ही राज्यों में उसकी सरकार नहीं है। केंद्र से आने वाला यह पैसा खर्च कर जनता के सामने उसका श्रेय भाजपा और बसपा को नहीं मिले, कांग्रेस को इसी बात की चिंता है।
जानकारों का कहना है कि यदि दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें होतीं तो शायद कभी केंद्रीय प्राधिकरण बनाने की बात भी नहीं उठती। या कम से कम एक राज्य में भी कांग्रेस की सरकार होती तो ऐसे सिकी प्राधिकरण को बनाने का सवाल ही नहीं था। अभी भी प्राधिकरण गठन करने का अगला कदम नए राज्य का गठन ही है। स्वयं कांग्रसी नेता यह स्वीकार कर रहे हैं और उन्होंने इसका संकेत भी दिया है।
छोटे राज्यों का जल्दी विकास होता है यह बात एक अर्धसत्य है। छत्तीसगढ़ का विकास नहीं हुआ बल्कि वह अब एक नक्सलवाद से प्रभावित राज्य बनकर रह गया है जहां की सरकार का पूरा समय, शक्ति और धन अब इस समस्या से निपटले में जाया हो रही है। बुंदेलखंड में ऐसी कोई समस्या नहीं है लेकिन बेरोजगारी और अशिक्षा के कारण सौ समस्याएं जन्म लेंगीं।
यि सचमुच इस क्षेत्र का विकास करना है तो इसके लिए नया राज्य बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। उद्योग-धंधे, बिजलीघर, बांध, सिंचाई योजनाएं बनाकर भी यह लक्ष्य पाया जा सकता है। यदि अंतिम लक्ष्य विकास करना है तो नए राज्य का गठन कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि सभी दलों की नजर कुछ और नए पदों की गुंजायश निकालने पर लगी है।
इस इलाके की खनिज संपदा को लेकर बहुत दुहाई दी जाती है लेकिन क्या गांरटी है उससे समृद्धि आएगी। भाजपा अक्सर जैसा आरोप लगाती है कि केंद्र मप्र के हिस्से की रायल्टी खा जाता है कोयला नहीं देता, तो इस बात की पूरी संभावना है कि बुंदेलखंड के साथ भी यही होगा।
ऐसे कई और मुद्दों पर विस्तार से जानकारी देने का यह सिलसिला जारी रहेगा।
पृथक बुंदेलखंड : सच्चाई यह भी-1
पृथक बुंदेलखंड: सच्चाई यह भी -1
पृथक बुंदेलखंड राज्य की स्थापना को लेकर आम लोगों का क्या सोचना है और क्या वे ऐसे किसी राज्य का निवासी बनने को तैयार हैं? इस मुद्दे को लेकर कभी आम राय शुमारी नहीं की गई। यह महज चंद अवसरवादी राजनेताओं का शिगूफा है जो यह सोचकर इस मसले को हवा देते रहे हैं कि पृथक राज्य बनने पर वे दोयम दर्जे से उठकर पहली पंक्ति में शुमार हो सकेंगे और उन्हें भी राजसत्ता का सुख भोगने का अवसर भी मिल जाएगा।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती हों या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, सभी ने अब तक बुंदेलखंड के मामले में राजनीतिक निहितार्थों के चलते ही बात की है। मायावती ने एक समय वर्तमान उत्तरप्रदेश के तीन हिस्से करने का मसला उछाला था लेकिन तीन साल पहले जब एक कांग्रेसी विधायक ने इस मसले पर विधानसभा में संकल्प पेश किया तो उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। उस पर चर्चा तक करने की जरूरत महसस नहीं की गई। अब वे विधायक प्रदीप जैन आदित्य केंद्रीय मंत्री बन चुके हैं और एक बार फिर उन्हें पृथक बुंदेलखंड का मुद्दा याद आ गया है।
दरअसल राहुल गांधी ने अचानक इस मामले में केंद्रीय प्राधिकरण बनाने और विशेष पैकेज देने की मांग उठाकर नया रंग दे दिया है। चूंकि बसपा और भाजपा ने इसका विरोध किया तो कांग्रेसियों को बैठे बिठाए उन्हें घेरने का एक मुद्दा मिल गया। अचानक प्राधिकरण की आड़ में पृथक बुंदेलखंड राज्य बनाने की चर्चा की जा रही है। कांग्रेसियों का एक तबका जिसे बुंदेलखंड की राजनीति में ही रुचि है अचानक इसे पार्टी के एजेंडे के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।
सच यह है कि दोनों ही प्रदेशों में फैले बुंदेलखंड के एक दर्जन से अधिक जिलों में कांग्रेस का जनाधार पिछले दो दशकों में बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सागर संभाग के पांच जिलों की 26 सीटों में से 20-22 सीटों तक पर भाजपा का कब्जा रह चुका है। हालांकि पिछले चुनाव में यह वर्चस्व कुछ घटा है लेकिन अभी भी भाजपा का जनाधार यहां कांग्रेस से अधिक है और उसके पास अधिक सीटें भी हैं। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के वर्चस्व के बीच कांग्रेस को पिछले कुछ सालों से लगातार मुंह की खानी पड़ी है।
जानकारों का मानना है कि पिछले लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के कड़े प्रयासों के बावजूद कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में वैसी सफलता नहीं मिल पाई जो एक समय इस राज्य में पार्टी का इतिहास रही है। संभवत: अब उन्हें भी इस बात का एहसास हो चुका है कि सपा और बसपा के बन चुके जनाधार को पूरी तरह नेस्तनाबूत कर वापस कांग्रेस को स्थापित करना शायद कभी संभव नहीं होगा। लिहाजा पार्टी के थिंक टैंक ने यह रास्ता सुझाया है कि इस बड़े राज्य का विभाजन कर दिया जाए तो छोटे टुकड़ों में पैदा होने वाले नए राज्यों को हथियाना अपेक्षाकृत कहीं अधिक आसान होगा।
बुंदेलखंड को देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में शुमार किया जाता है और काफी हद तक इसकी जिम्मेदार कांग्रेस है। इस क्षेत्र की जनता ने कांग्रेस को बरसों तक अपना अंध समर्थन दिया लेकिन बदले में उसे क्या मिला? अब भाजपा की सरकार होने के बावजूद भी स्थिति में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आया है। ऐसे में नया राज्य बनाने की दुहाई देने वाले नेताओं को यह बात साबित करके दिखाना चाहिए कि आखिर वे कहां से विकास की गंगा बहाएंगे?
यह शृंखला जारी रहेगी। अगले अंक में पढ़ें कैसा होगा एक संसाधनविहीन, गरीब, पिछड़ा बुंदेलखंड राज्य…
पृथक बुंदेलखंड: सच्चाई यह भी -2
पृथक बुंदेलखंड मेरे एजेंडे में नहीं: शिवराजसिंह
सागर (डेली हिंदी न्यूज़)। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने एक बार फिर दो टूक शब्दों में कहा है कि पृथक बुंदेलखंड राज्य उनकी प्राथमिकताओं में शुमार नहीं है। सीएम ने अपने संक्षिप्त प्रवास के दौरान यह बात कही। वे यहां चातुर्मास कर रहे संत रविशंकर महाराज रावतपुरा सरकार के दर्शन करने आए थे।
रावतपुरा सरकार के दर्शन के बाद ढाना हवाई पट्टी रवाना होने से पूर्व पत्रकारों से संक्षिप्त चर्चा में श्री चौहान ने दो टूक शब्दों में कहा कि पृथक बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा उनकी सरकार के एजेंडे में शामिल नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ में उनके नाम की चर्चा से संबंधित सवाल को उन्होंने फौरन हवा में उड़ा दिया। सवाल पूछने वाले पत्रकार से उन्होंने कहा, धन्यवाद।
सागर में निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज को मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया से मान्यता दिलाने के मसले से संबंधित सवाल पर सीएम ने कहा कि सरकार ने अपने हिस्से का काम पूरा कर दिया है। कॉलेज को मान्यता देने का काम एमसीआई का है और उन्हें उम्मीद है कि काउंसिल जल्द ही इस बारे में कोई फैसला करेगी। उन्होंने कहा कि कॉलेज में इसी सत्र में पढ़ाई आरंभ होने की संभावना है।
अपने करीब दो घंटे के प्रवास के दौरान सीएम ने किसी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया न ही वे कहीं गए। सरकारी विमान से ढाना हवाई पट्टी पर निर्धारित समय 3 बजे से करीब डेढ़ घंटे की देर से लैंड करने के बाद वे कार में सीधे सुभाषनगर स्थित कल्पना भवन पहुंचे। रावतपुरा सरकार वहीं चातुर्मास कर रहे हैं।
श्री चौहान के साथ सांसद भूपेंद्रसिंह ठाकुर और पूर्व मंत्री रामपाल भी भोपाल से विमान में सागर आए थे। उनके अलावा सागर विधायक शैलेंद्र जैन और पूर्व कैबिनेट मंत्री तथा वरिष्ठ भाजपा नेता हरनामसिंह ठाकुर, दमोह सांसद शिवराजसिंह लोधी, बीना विधायक डॉ. विनोद पंथी भी इस अवसर पर मौजूद थे। सीएम ने सबके साथ जाकर संत के दर्शन किए और आशीर्वाद लिया। बाद में रावतपुरा सरकार ने करीब 20 मिनट तक सीएम से एकांत में चर्चा की।
इससे पहले ढाना हवाईपट्टी पर भाजपा नेताओं ने सीएम की आगवानी की। हवाई पट्टी पर पूर्व विधायक सुधा जैन, लक्ष्मीनारायण यादव, संतोष साहू, डॉ. अशोक अहिरवार, आदि मौजूद थे। भोपाल लौटने से पूर्व सीएम ने हवाई पट्टी पर मौजूद जिला प्रशासन के तमाम वरिष्ठ अधिकरियों से संक्षिप्त चर्चा भी की। वे शाम करीब छह बजे वापस भोपाल रवाना हुए।
पन्ना के स्कूलों में ऐसे दे रहे शिक्षा की गारंटी
पन्ना (डेली हिंदी न्यूज़)। अजयगढ विकासखंड की ग्राम पंचायत मोहना के ग्राम निमहा में सरकारी मिडिल स्कूल इस शिक्षा सत्र के शुरू होने के बाद से आज तक एक भी दिन नही खुला। लापरवाही का आलम यह है कि शिक्षा विभाग के अफसर स्कूल के रोज खुलने का दावा कर रहे हैं जबकि गांववासियों का कहना कुछ और ही है।
जिला शिक्षा अधिकारी पन्ना से संपर्क किए जाने पर उन्होंने दावा किया कि स्कूल रोज खुलता है और वे इसे सिद्ध कर सकते हैं। जबकि हमारे संवाददाता को गांववासियों के अलावा स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों और प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों ने बताया कि इस सत्र में एक भी दिन स्कूल नहीं खुला है।
विभागीय अधिकारियों के इस रवैये के कारण स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य खतरे में पढ़ गया है। एक ओर केंद्र सरकार शिक्षा गारंटी कानून लागू कर रही है दूसरी ओर निमहा गांव जैसे स्कूल हैं जहां एक भी दिन पढ़ाई तक नहीं हो रही।
कालेजो में प्रोफेसरो की भारी कमी
स्कूलों के साथ ही पन्ना के शासकीय छत्रसाल कॉलेज और शासकीय गर्ल्स कॉलेज में प्राध्यापकों की भारी कमी के चलते शिक्षण कार्य पर बुरा असर पड़ रहा है। सालो से रिक्त पदों को भरने की कोई पहल नही की गई है।
छत्रसाल कॉलेज में कॉमर्स का केवल मात्र एक ही प्राध्यापक है जिसे तीनों कक्षाओं को संभालना पड़ता है। वहीं गर्ल्स कॉलेज में साइंस का कोई टीचर ही नहीं है। कक्षाएं लेने के साथ ही प्राध्यापकों को हर महीने होने वाले सी.सी. टेस्ट भी और साल में कई बार होने वाली विभिन्न परिक्षाएं भी करानी पड़ती है।
पिछले कई सालों से गेस्ट फेकल्टी के तौर पर एडहॉक टीचर्स को रखा जाता था लेकिन इस बार अब तक नियुक्तियां नहीं होने से व्यवस्थाएं बुरी तरह चरमरा गई हैं।
छतरपुर सहित कई जगहों पर आयकर छापे
सर्वे की जद में आए समूहों और ठिकानों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शाम तक इस बारे में विस्तृत जानकारी देने की बात कर रहे हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि कार्रवाई में बड़े पैमाने पर आयकर चोरी का पता लग सकता है।
छतरपुर में शहर की रामगली बजरिया के किराना व्यापारी पुरुषोत्तम पाठक और गल्लामंडी के किराना व्यापारी भोजराज सिंधी की दुकानों में इनकम टैक्स कमिश्नर ग्वालियर की टीम ने छापे मारे। टीम ने जैसे ही कार्रवाई शुरू की पुरुषोत्तम पाठक को हार्ट अटैक आ गया। अधिकारियों ने करीब एक घंटे तक व्यापारी के परिजनों को उसे अस्पताल ले जाने से रोके रखा।
इसकी खबर जब शहर के अन्य व्यापारियों को लगी तो उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया। इसके बाद अधिकारियों ने व्यापारी को अस्पताल ले जाने की अनुमति दी। पुरुषोत्तम की हालत गंभीर है और उसका जिला अस्पताल में इलाज किया जा रहा है।
मनरेगा में मनमानी और घोटालों की बाढ़
टीकमगढ़ जिले में एक बी.जे.पी.नेता को फायदा पहुंचाने के लिए लगभग 4 करोड़ का सप्लाई आदेश दिया गया। हरियाली महोत्सव के नाम पर ट्री-गार्ड, पोल, चेन लिंक, फेंसिंग वायर की खरीदी का आदेश जुलाई 2008 में लघु उद्योग निगम के नाम पर दिया गया।
निगम में पंजीकृत फर्म गुडविल फैब्रिकेट्स और रिद्धी-सिद्दी इंटरप्राइस को ये आदेश दिए गए। इन फर्मो ने कागजों में जिले की सभी 6 जनपदों की ग्राम पंचायतों, स्कूलों और पुलिस थाने में सामान की सप्लाई कर दी। इसके बावजूद ना कहीं पौधे दिखे ना ट्री गार्ड। जिला पंचायत ने इन फर्मो को 12 सितंबर 2008 से 25 मई 2009 के बीच 1 करोड़ 59 लाख 25 हजार 375 रु का भुगतान कर दिया।
इस गोरखधंधे पर जिला पंचायत के सीईओ एके तिवारी द्वारा आपत्ति करने पर बीजेपी नेता रितेश भदोरा, पार्षद मनोज देवलिया और पुष्पेन्द्र गौर ने 13 अगस्त को सीईओ के साथ मारपीट की थी। कोतवाली पुलिस ने मामला दर्ज किया है लेकिन सभी आरोपी अभी फरार है।
पूर्व जिला पंचायत सीईओ एमसी वर्मा ने ये खरीदी आदेश दिए थे। खरीदी के लिए गठित समिति में पीओ [तकनीक] हरिवल्लभ त्रिपाठी इइआरइएस जीपी पटेल, अतिरिक्त सीईओ एबी खरे, मनरेगा केपीओ संजय सक्सेना, जनपद सीईओ को सम्मिलित किया गया था।
एस.पी.आकाश जिंदल के अनुसार जिला पंचायत ने खरीद प्रक्रिया का सारा रिकोर्ड जप्त कर लिया है। दोषी लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
Saturday, September 25, 2010
ऑस्कर में 'पीपली लाइव' BUndelkhand Darshan
ऑस्कर में 'पीपली लाइव'
आमिर खान की फिल्म पीपली लाइव को ऑस्कर अवार्ड के लिए भेजा गया है।
फिल्म को सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्मों की कैटेगरी में शामिल किया गया है। भारत में कर्ज में डूबे किसानों की समस्याओं का चित्रण करने वाली फिल्म पीपली लाइव को अगले साल के ऑस्कर पुरस्कारों की सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म श्रेणी में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के तौर पर चुना गया है।
भारतीय फिल्म फेडरेशन के महासचिव सुप्राण सेन ने प्रेस ट्रस्ट को बताया कि पीपली लाइव को ऑस्कर के लिए 27 फिल्मों में से भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के तौर पर चुना गया है। नवोदित निर्देशक अनुषा रिजवी की इस फिल्म में रंगमंच के कलाकारों ने अभिनय किया है और इसकी शूटिंग मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुई।
फिल्म में मीडिया और खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर और देश की राजनीतिक व्यवस्था पर भी निशाना साधा गया है। आमिर खान के लिए यह तीसरा मौका है जब उनकी फिल्म को इस बाबत चुना गया है। इससे पहले उनकी फिल्म लगान को वर्ष 2001 में और तारे जमीन पर फिल्म ने भी 2007 में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
आमिर खान की फिल्म 'पीपली लाइव' किसानों की आत्महत्या पर व्यंगात्मक फिल्म है जिसकी काफी सराहना हुई है। फिल्म का एक गीत महंगाई डायन खाये जात है,काफी लोकप्रिय हुआ था।
'पीपली लाइव' इससे पहले सनडांस फिल्म फेस्टिवल में भी जा चुकी है। भारत की ओर से सनडांस फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित होने वाली यह पहली फिल्म है। बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में भी फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग की गई थी। दक्षिण अफ्रीका में हुए 31वें डर्बन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फर्स्ट फीचर फिल्म का भी अवार्ड मिल चुका है। फिल्म पीपली लाइव ने रिलीज होने से पहले ही अपनी लागत से ज्यादा कमाई कर ली थी।
Thursday, September 23, 2010
Tikamgarh Tourism Places The district of bundelkahnd
Jain Tirth Sidhha Kshetra Ahar Ji Ji
A Village of Baldeogarh tehsil Ahar lies on the side of Tikamgarh-Chhattarpur road at a distance of 25 Km. from the district headquarters of the district. Regular buses are available to reach this place. It is evidently an old village said to have been populated by Jamalpur Ahars, which was once an important Jain Centre. Several ruins, Old images and temples are located here. The Village contain three old Jain temples one of these temple have an image of Shantinath, having height 20 feet. A tank of Chadella days with a fine dam stands here. |
A Village situated about 3 Km., west of Madia Village on Tikamgarh-Niwari road in the Prithvipur tehsil. The village stands on a hill. There is a well known temple of the Goddess of Achroo Mata. It is famous for a kund which is always filled with water and never dried irrespective of number of users. Every year on the occasion of Nav-Durga festival falling in the month of March-April (Chaitra), fair is organised under the supervision of Gram Panchyat. |
The headquarters town of the Baldeogarh is a tehsil of the same name. It is situated on the Tikamgarh-Chhattarpur road at distance of 26 Km. from Tikamgarh. The massive rock fort standing above the beautiful tank Gwal-Sagar, presents a very pleasing sight. The fort is a very fine specimen of its class and one of the most picturesque in the region. A big old Gun is still placed in this fort. The town is known for its betel-leaf cultivation. The importance of town also lies in its famous temple of ' Vindhya Vasini Devi'
An annual seven days Vindhyavasani fair is held here in the month of Chaitra and attended by about 10,000 persons.
The headquarter town of the tehsil of the same name is situated on the Tikamgarh-Mau-Ranipur road, at a distance of 40 Km. from Tikamgarh. The nearest railway station is Mau Ranipur (U.P.). It lies below the level of Madan Sagar Lake. The lake is long and broad. It retained by two dams of great length. These dams are built by the Chandella Chief Madan Varman(1129-67) after whom the leke is called Madan Sagar. The Canals of the lake flows through the heart of the town.The place is if considerable interest of containing many Muhammadan buildings, most, if not all the later Mughal style Shahjahan.
It is one of the famous village of Niwari tehsil situated at a distance of 22 Km. on the Niwari-Senderi road. Buses are available to reach this place. Its importance lies in its having been the first place seized by the Bundelas from the Khangars. Kundar remained the capital of the State until 1539 when it was shifted to Orchha. On the top of a small hill stands a fort built by Maharaja Birsingh Dev. The temple of local Goddess Maha Maya Gridh Vasni stands here. There is a large tank held on the temple Goddess, which is called 'Singh Sagar'. A weekly market held on every Monday. |
A important village situated 5 Km. south of Tikamgarh town on the bank of the Jamdar river. This place is famous for kundadev Mahadev temple. Ot is believed that Shiv Linga has emerged from Kunda . In the south of it there is beautiful picnic spot known as 'Barighar' and a beautiful waterfall known as 'Usha Water Fall'. The village possesses Achreological Museum and Vinobha Sansthan. Maharaja Birsingh deo established the Keshva Sahitya Sansthan which was partonized by Pandit Banarsidas Chaturvedi and Yaspal Jain during their stay at Kundeshwar. Three big Melas held at Kundeshwar annually. An important fair attended by 50,000 persons held in pouse/Magh (January) on the occasion of Sankranti. Second held on the occasion of Basant Panchimi and third held on the Kartik Ekadasshi in the month of October/November. |
A small village situated on the North-West of Tikamgarh town at a distance of about 20 Km.. The importance of this place lies in its famous SUN Temple. It entrance is from the east. SUN idol is placed here. The other main object of interest of the village is a temple of Vindhya Vasani Devi on the top of hill. |
The headquarter town of the Niwari tehsil of the same name, is situated on the Tikamgarh-Jhansi road, at a distance of about 80 Km. to north-west of Tikamgarh. Niwari is the only tehsil town which is connected by the rail and lies on the Jhansi-Manikpur section of the Central railway. In former days a small fort was there but was demolished by the Marathas. It possesses an temple of Khedapati Hanumanji.
A village of Niwari tehsil, Orchha is situated on the Betwa river at a distance of about 13 Km. from tehsil headquarter. It is 15 Km. from Jhansi(U.P.). Orchha is linked by the rail on Jhansi-Manikpur section of the Central railway.
Orchha was the capital town of the state. It was founded by Maharaja Rudra Pratap Singh in 1531 A.D.. The name Orchha or Ondchha is traditionally derived from scoffing remark of a Rajput Chief who on visiting the site selected for capital town. On an island in the Betwa which has been surrounded by the battemented wall, and approached by a causeway over a fine bridge of fourteen arches, stands a huge palace fort mainly the work of Maharaja Bir Singh Dev. It consists of several connected buildings constructed at a different times. The finest of these are the Raj Mandir and Jahagir Mahal.
Orchha is famous religious centre of Hindus. It is known for its religious and cultural heritage. The following places are famous in the town.
RAM RAJA TEMPLE , JAHAGIR MAHAL, CHATURBUJ TEMPLE, LAXMI TEMPLE, PHOOL BAGSHISH MAHAL, KANCHANA GHAT, CHANDRA SHEKHAR AZAD MEMORIAL, SAVAN- BHADON, HARDOL KI SAMADHI, BADI CHHATRIAN, RAI PRAVEEN MAHAL, KESHAV BHAVAN.
An important municipal town of Tikamgarh-Nowgaon road, at a distance of about 27 Km. from Jatara. Buses are available to reach this place. The town was originally given to Dharaman God, son of Bhagwan Rao, first chief of Datia. An annual fair held on the occasion of Ramnavmi.
It is an old village about 5 Km. south-east of Tikamgarh town. It is famous Jain pilgrimage centre which attracts large number of Jain devotees. The village contains about 80 old Jain temples. Few Jain temples are under construction. The famous Jain temples of twenty four Tirthakars is the main attraction of devotees. An important Jain fair, attended by 10,000 persons, held in the month of Kartika sudi Purnima. It is managed by the trust.
The headquarter town of tehsil Prithvipur. The name of the town derived from Prithvi Singh . Near the town lies Radha Sagar Tank. The Important temples of the town are Somnath temple, Ramjanki temple and Atan ke Hanumanji . The town posses a fort.
Tikamgarh is the headquarter town of the district and tehsil of the same name. The earlier name of the town was 'Tehri' (i..e. a triangle) consisting of three hamlets, forming a rough triangle. In the Tikamgarh town there is muhalla still known as 'Purani Tehri' . Before independence, it was the headquarter town of the erstwhile Orchha State. The name of 'Tehri' was changed to Tikamgarh in 1887, in the honour of Lord Krishna, as Tikam is one of the name of Lord Krishna. |
This temple seems to belong to the Pratihara period in the 9th century A.D. It is a east facing temple consisting of Garbhgriha, Antral and Mukhmandapa. The elevation is in Pancharathi scheme and consist of Plinth, Jangha, Varandika and Shikhar. The pillers of Mukhmanapa are decorated. A sculpture of Lord Surya is installed on the flank wall. |
टीकमगढ़(Tikamgarh) -: जिला मुख्यालय के नाम पर, टीकमगढ़(tikamgarh) है. शहर के मूल नाम टेहरी था. 1783 CE ओरछा (orchha) विक्रमजीत (1776-1817 CE के शासक) में ओरछा (orchha) से अपनी राजधानी टेहरी में स्थानांतरित कर दिया है और यह टीकमगढ़(tikamgarh) टीकम (नाम कृष्ण के नामों में से एक है) ! टीकमगढ़(tikamgarh) जिला बुंदेलखंड (bundelkhand) क्षेत्र का एक हिस्सा है. यह जामनी, बेतवा और धसान की एक सहायक नदी के बीच बुंदेलखंड (bundelkhand) पठार पर है !
इस जिले के अंतर्गत क्षेत्र ओरछा (orchha) के सामंती राज्य के भारतीय संघ के साथ अपने विलय तक हिस्सा था ! ओरछा (orchha) राज्य रुद्र प्रताप द्वारा 1501 में स्थापित किया गया था. विलय के बाद, यह 1948 में विंध्य प्रदेश के आठ जिलों में से एक बन गया. 1 नवंबर को राज्यों के पुनर्गठन के बाद, 1956 यह नए नक्काशीदार मध्य प्रदेश राज्य के एक जिले में बन गया !
टीकमगढ़(tikamgarh) जिले के तीन उप में विभाजित-विभाजन है, जो आगे छह तहसीलें में विभाजित किया जाता है. टीकमगढ़(tikamgarh) उप विभाजन शामिल टीकमगढ़(tikamgarh) और बल्देवगढ़ तहसीलें. निवाडी और पृथ्वीपुर तहसीलें निवाडी उप विभाजन फार्म जबकि जतारा उप विभाजन जतारा और पलेरा तहसीलें शामिल हैं. जिले के छह विकास खंडों, अर्थात् टीकमगढ़(tikamgarh), बल्देवगढ़ , जतारा, पलेरा, निवाडी और पृथ्वीपुर शामिल है !
बेतवा नदी जिले की पूर्वी सीमा के साथ बहती है उसकी सहायक नदियों में से एक के उत्तर पश्चिमी सीमा के साथ बहती है ! बेतवा की सहायक नदियों इस जिले से बह जामनी, बागड़ी और बरुआ हैं !
टीकमगढ़(tikamgarh) क्षेत्र के कुछ प्रमुख स्थान
बड़े महादेव :- ग्राम जेवर, टीकमगढ़(tikamgarh) में यह प्राचीन मंदिर बीच बस्ती में स्थित है, जिसमें शंकरजी की केवल एक पिंडी थी। उस पिंडी के आस-पास कई पिंडियां भूमि से स्वयं प्रकट हो गयीं, जो प्रति वर्ष बढ़ती जाती हैं। संप्रति तीन पिंडियां बहुत बड़ी हैं, तीन मझोली हैं और दो निकल रही हैं। यह स्थान रानीपुर रोड स्टेशन से ४ मील दक्षिण में है।
अहार जी - बल्देवगढ़ तहसील का यह गांव जिला मुख्यालय से 25 किमी. दूर टीकमगढ़-छतरपुर रोड पर स्थित है। यह गांव जैन तीर्थ का प्रमुख केन्द्र कहा जाता है। अनेक प्राचीन जैन मंदिर यहां बने हैं, जिनमें शांतिनाथ मंदिर प्रमुख है। इस मंदिर में शांतिनाथ की 20 फीट की प्रतिमा स्थापित है। एक बांध के साथ चंदेल काल का जलकुंड यहां देखा जा सकता है। इसके अलावा श्री वर्द्धमान मंदिर, श्री भेरू मंदिर, श्री चन्द्रप्रभु मंदिर, श्री पार्श्वनाथ मंदिर, श्री महावीर मंदिर, बाहुबली मंदिर और पंच पहाड़ी मंदिर यहां के अन्य लोकप्रिय मंदिर हैं। बाहुबली मंदिर में भगवान बाहुबली की 15 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है।
पपौरा जी - टीकमगढ़(Tikamgarh) से ५ किलोमीटर दूर सागर टीकमगढ़(Tikamgarh) मार्ग पर पपौरा जी जैन तीर्थ है ,जो कि बहुत प्राचीन है और यहाँ १०८ जैन मंदिर हैं जो कि सभी प्रकार के आकार मैं बने हुए जैसे रथ आकार और कमल आकार यहाँ कई सुन्दर भोंयरे है |
बंधा जी - एक बार एक संवत् 1890 में कलाकार मूर्तियों को बेचने के लिए 'बम्होरी जा रहा था. अचानक बैलगाड़ी बम्होरी के पास एक पीपल का पेड़ के पेड़ के पास रुक गई और उसने अनपे सभी प्रयासों को बेकार पाया और गाड़ी को आगे नहीं ले जा पाया पर जब कलाकार ने फैसला किया कि वह में मूर्ति स्थापित 'बंधा जी क्षेत्र' में स्थापित करेगा और उसकी गाड़ी बंधा जी की ओर बढ़ शुरू कर दिया यह मूर्ति अब भी बंधा जी के विशाल मंदिर में स्थापित है!
अछरू माता- टीकमगढ़-निवाड़ी रोड पर स्थित यह गांव पृथ्वीपुर तहसील में है। एक पहाड़ी पर बसे इस गांव में माता अछरू का चर्चित मंदिर है। मंदिर एक कुंड के लिए भी प्रसिद्ध है जो सदैव जल से भरा रहता है। हर साल नवरात्रि के अवसर पर ग्राम पंचायत की देखरेख में मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आकर शिरकत करते हैं। यह स्थान ग्राम पृथ्वीपुरा, टीकमगढ़(tikamgarh) में है। यहां मूर्ति नहीं है, एक कुंड के आकार का गड्ढा है। यहां चैत्र-नवरात्र में प्राचीनकाल से मेला लगता आ रहा है।
बल्देवगढ़ - यह नगर टीकमगढ़-छतरपुर रोड़ पर टीकमगढ़ से 26 किमी. दूर स्थित है। खूबसूरत ग्वाल सागर कुंड के ऊपर बना पत्थर का विशाल किला यहां का मुख्य आकर्षण है। एक पुरानी और विशाल बंदूक आज भी किले में देखी जा सकती है। विन्ध्य वासिनी देवी मंदिर बलदेवगढ़ का लोकप्रिय मंदिर है। चैत के महीने में सात दिन तक चलने वाले विन्ध्यवासिनी मेला यहां लगता है। यहां पान के पत्तों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।
जतारा- टीकमगढ़ से 40 किमी. दूर टीकमगढ़-मऊरानीपुर रोड पर यह नगर स्थित है। नगर की मदन सागर झील काफी खूबसूरत है। इस लंबी-चौड़ी झील पर दो बांध बने हैं। इन बांधों को चन्देल सरदार मदन वर्मन ने 1129-67 ई. के आसपास बनवाया था। जतारा में अनेक मुस्लिम इमारतों को भी देखा जा सकता है।
गढ़कुडार- यह निवाड़ी तहसील का लोकप्रिय गांव है। यह प्रथम स्थल है जिसे बुन्देलों ने खांगरों से हासिल किया था। 1539 तक यह स्थान राज्य की राजधानी था। इस गांव में एक छोटी पहाड़ी के ऊपर महाराज बीरसिंह देव द्वारा बनवाया गया किला देखा जा सकता है। देवी महा माया ग्रिद्ध वासिनी मंदिर भी यहीं स्थित है। मंदिर में सिंह सागर नाम का विशाल कुंड है। हर सोमवार को यहां बाजार लगता है।
कुंडेश्वर- टीकमगढ़ से 5 किमी. दक्षिण में जामदर नदी के किनारे यह गांव बसा है। गांव कुंडदेव महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मंदिर के शिवलिंग की उत्पत्ति एक कुंड से हुई थी। गांव के दक्षिण में बारीघर नामक एक खूबसूरत पिकनिक स्थल और आकर्षक ऊषा वाटर फॉल है। विनोबा संस्थान और पुरातत्व संग्रहालय भी यहां देखा जा सकता है।
मडखेरा- सूर्य मंदिर के लिए विख्यात मडखेरा टीकमगढ़ से 20 किमी. उत्तर पश्चिमी हिस्से में स्थित है। मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा की ओर है तथा इसमें भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापित है। इसके निकट ही एक पहाड़ी पर बना विन्ध्य वासिनी देवी का मंदिर भी देखा जा सकता है।
ओरछा- बेतवा नदी तट पर बसा पृथ्वीपुर तहसील का यह गांव उत्तर प्रदेश के झाँसी से 15 किमी. की दूरी पर है। काफी लंबे समय तक राज्य की राजधानी रहे ओरछा की स्थापना महाराजा रूद्र प्रताप ने 1531 ई. में की थी। ओरछा को हिन्दुओं का प्रमुख धार्मिक केन्द्र माना जाता है। राजा राम मंदिर, जहांगीर महल, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, फूलबाग, शीशमहल, कंचन घाट, चन्द्रशेखर आजाद मैमोरियल, हरदौल की समाधि, बड़ी छतरी, राय प्रवीन महल और केशव भवन ओरछा के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
Thursday, September 16, 2010
बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा
ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं। शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं- सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं खास, दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास।
शास्त्रों में वर्णित है कि आदि मनु-सतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बालरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया और त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लिया। इस प्रकार मधुकर शाह और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि साक्षात दशरथ और कौशल्या के अवतार थे। त्रेता में दशरथ अपने पुत्र का राज्याभिषेक न कर सके थे, उनकी यह इच्छा भी कलियुग में पूर्ण हुई।
मनोहारी कथा
रामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की एक मनोहारी कथा है। एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया।
चतुर्भुज मंदिर का निर्माण
रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया किन्तु उन्होंने तीन शर्तें रखीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी, यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी, रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी। रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोड़ों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पड़ा है। यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है। यह भी एक संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी।
यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है।
यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छड़दारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर , राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है। ओरछा झांसी से मात्र 15 किमी. की दूरी पर है। झांसी देश की प्रमुख रेलवे लाइनों से जुड़ा है। पर्यटकों के लिए झांसी और ओरछा में शानदार आवासगृह बने हैं।
नकली बीज, नकली फसल मगर असली नुकसान
डेटलाइन इंडिया
झांसी/महोबा/ओरछा/छतरपुर, 16 सितंबर- इस बार आपकी थाली से दाल महंगाई की वजह से नहीं बल्कि फरेब की वजह से गायब होगी। लाखों एकड़ में बोई गई उरद की फसल में भ्रष्टाचार की ऐसी घुन लगी कि फसलें तो खेतों में लहलहाती रहीं और उनसे दाल गायब हो गई।
कम से कम ढाई अरब रुपए का चूना किसानों को लग चुका है। बुंदेलखंड के लाखों हेक्टेयर जमीन में नकली फसल ने सूखे की मार झेल रहे किसानों के चेहरे की रंगत फिर से छीन ली है। फसल की तरह लहलहाते खेत-खलिहान में घास हैं। किसानों ने जो बीज बोए थे उसने दगा दे दिया है।
यहां के लोग इस फसल को बाबा कह रहे हैं। दरअसल बुंदेलखंड में जिसके आगे-पीछे कोई नहीं होता है उसे बाबा कहा जाता है। फसल की खेत में हर तरफ नजर आने वाली घास है, इसलिए ये फसल बाबा है। इस नकली फसल को सिर्फ जानवर खा सकते हैं। किसानों ने फसल लगाई थी उरद की दाल की। जिसमें सिवाय पत्ताों के कुछ नहीं हुआ।
किसानों ने ये बीज सहकारिता विभाग से खरीदे थे, किसानों ने अब इस बीज का नाम नामर्द दिया है और फसलों को बाबा। किसानों की मानें तो सरकारी एग्रीकल्चर विभाग वालों ने भरोसा दिलाया था कि इस बीज से फसल 40 से 50 गुना ज्यादा होगी। इसलिए किसानों ने अपना देशी बीज नहीं बोया। कर्ज लेकर सरकारी बीज बोया और बदले में ये घास लहलहा रहे हैं।
इस ठगी के खिलाफ सैंकड़ों किसानों ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। किसानों की मांग है कि यूपी सरकार से इन्हें मुआवजा दे। सरकार ने किसानों के साथ धोखा किया है। इनका तर्क है कि इन्होंने कृषि विभाग से बीज लिया था, जो नपुंसक है। किसान नेताओं का कहना है कि अगर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो किसान आंदोलन को और आगे बढ़ाया जाएगा। राष्ट्रीय नेतृत्व की अगुवाई में पूरे प्रेदश और देश में आंदोलन चलाया जाएगा।
केसीसी यानी किसान क्रेडिट कार्ड। इसके जरिए किसान कर्ज ले सकता है और फसलों की बीमा भी होती है। लेकिन बीमा की रकम तभी मिलती है जब कोई प्राकृतिक आपदा आई हो। बीमा कंपनी धोखे की लहलहाती फसल को आपदा नहीं मानती। भले ही फसल में दाने हों या न हों। सरकारी अफसर मान चुके हैं कि ये आपदा नहीं है और वो ये भी जानते हैं कि बीमा के नाम पर किसानों को कुछ नहीं मिलने वाला। हालांकि ललितपुर के डीएम किसानों की परेशानी को समझ रहे हैं और किसानों की बात सरकार तक पहुंचाने का भरोसा भी दे रहे हैं।
बीज की धोखेबाजी की घटना ने देश के इकलौते इंडियन इंस्टिटयूट ऑफ पल्स रिसर्च के वैज्ञानिकों के भी कान खड़े कर दिए। धोखेबाजी का ये खेल कितना बड़ा है ये जानना भी जरूरी है। अरहर की दाल महंगी होने के बाद नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत तैयार की गई ए थ्री पी योजना, यानी एक्सिलरेटेड पल्स प्रोडक्शन प्रोग्राम।
इसमे तय किया गया कि देश को दालों के आयात से बचाना चाहिए। इसके लिए दाल के ऐसे बीज बनाने की योजना बनी जो देश में ही पैदा हों। देश में ही बोए जाएं ताकि देश में दालों की कोई कमी न रहे। योजना के तहत बीज बोने और बांटने में आने वाले खर्च में केंद्र सरकार प्रदेश सरकार के महकमों को देगी 75 फीसदी सब्सिडी। ए थ्री पी के तहत पैदा किए गए उरद की दाल के इस बीज का नाम है आजाद-वन। इसमें आम बीज की अपेक्षा 40 गुना फसल पैदा करने की ताकत का दावा किया गया।
देश में उरद की दाल पैदा करने में मध्य प्रदेश और उत्तार प्रदेश अव्वल है। यूपी में उरद की फसल का बड़ा केंद्र ललितपुर है। आजाद-वन नाम का बीज कृषि विभाग के गोदामों के जरिए किसानों को बांटा गया। प्रादेशिक कॉपरेटिव सोसाइटी के भंडारों से बीज का वितरण हुआ।
बीज को प्रामणित किया उत्तार प्रदेश बीज प्रामाणिकरण संस्थान ने। एक हेक्टेयर में करीब 15 किलो बीज की खपत है। बीज 80 रुपये किलो बिकी, जिसमें किसानों को मिली 12 रुपये की छूट। ये फसल 90 दिनों की है जो 15 जुलाई को बोई गई और 15 अक्टूबर तक काटी जानी है। इस हिसाब से अब तक फसल में फूल बन जाते और फल की शक्ल में फलियां आने लगतीं। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं।
पीसीएफ के जीएम की मानें तो बुंदेलखंड के जालौन और उरई में 100 क्विंटल, झांसी में 100, ललितपुर में 300, हमीरपुर में 50, महोबा में 50, बांदा में 200, आगरा में 20, सीतापुर में 100, फतेहपुर में 100 और बाराबंकी में 50 क्विंटल यही दगाबाज बीज यानी आजाद वन की सप्लाई हुई। अब जब जगह-जगह से इस धोखे की हकीकत सामने आने लगी है। जिसके बाद डीएनए और दूसरे टेस्ट की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
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Pramod Rawat
नपुंसक बीजों से उगी नामर्द फसल, ढाई अरब खाक
यहां के लोग इस फसल को बाबा कह रहे हैं। दरअसल बुंदेलखंड में जिसके आगे-पीछे कोई नहीं होता है उसे 'बाबा' कहा जाता है। फसल की खेत में हर तरफ नजर आने वाली घास है, इसलिए ये फसल बाबा है। इस नकली फसल को सिर्फ जानवर खा सकते हैं। किसानों ने फसल लगाई थी उरद की दाल की। जिसमें सिवाय पत्तों के कुछ नहीं हुआ। किसानों ने ये बीज सहकारिता विभाग से खरीदे थे, किसानों ने अब इस बीज का नाम नामर्द दिया है और फसलों को बाबा। किसानों की मानें तो सरकारी एग्रीकल्चर विभाग वालों ने भरोसा दिलाया था कि इस बीज से फसल 40 से 50 गुना ज्यादा होगी। इसलिए किसानों ने अपना देशी बीज नहीं बोया। कर्ज लेकर सरकारी बीज बोया और बदले में ये घास लहलहा रहे हैं।
इस ठगी के खिलाफ सैंकड़ों किसानों ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। किसानों की मांग है कि यूपी सरकार से इन्हें मुआवजा दे। सरकार ने किसानों के साथ धोखा किया है। इनका तर्क है कि इन्होंने कृषि विभाग से बीज लिया था, जो नपुंसक है। किसान नेताओं का कहना है कि अगर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो किसान आंदोलन को और आगे बढ़ाया जाएगा। राष्ट्रीय नेतृत्व की अगुवाई में पूरे प्रेदश औऱ देश में आंदोलन चलाया जाएगा।
केसीसी यानी किसान क्रेडिट कार्ड। इसके जरिए किसान कर्ज ले सकता है और फसलों की बीमा भी होती है। लेकिन बीमा की रकम तभी मिलती है जब कोई प्राकृतिक आपदा आई हो। बीमा कंपनी धोखे की लहलहाती फसल को आपदा नहीं मानती। भले ही फसल में दाने हों या न हों। सरकारी अफसर मान चुके हैं कि ये आपदा नहीं है और वो ये भी जानते हैं कि बीमा के नाम पर किसानों को कुछ नहीं मिलने वाला। हालांकि ललितपुर के डीएम किसानों की परेशानी को समझ रहे हैं और किसानों की बात सरकार तक पहुंचाने का भरोसा भी दे रहे हैं।
बीज की धोखेबाजी की घटना ने देश के इकलौते इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पल्स रिसर्च के वैज्ञानिकों के भी कान खड़े कर दिए। धोखेबाजी का ये खेल कितना बड़ा है ये जानना भी जरूरी है। अरहर की दाल महंगी होने के बाद नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत तैयार की गई ए थ्री पी योजना, यानी एक्सिलरेटेड पल्स प्रोडक्शन प्रोग्राम। इसमे तय किया गया कि देश को दालों के आयात से बचाना चाहिए। इसके लिए दाल के ऐसे बीज बनाने की योजना बनी जो देश में ही पैदा हों। देश में ही बोए जाएं ताकि देश में दालों की कोई कमी न रहे। योजना के तहत बीज बोने और बांटने में आने वाले खर्च में केंद्र सरकार प्रदेश सरकार के महकमों को देगी 75 फीसदी सब्सिडी। ए थ्री पी के तहत पैदा किए गए उरद की दाल के इस बीज का नाम है आजाद-वन। इसमें आम बीज की अपेक्षा 40 गुना फसल पैदा करने की ताकत का दावा किया गया।
देश में उरद की दाल पैदा करने में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश अव्वल है। यूपी में उरद की फसल का बड़ा केंद्र ललितपुर है। आजाद-वन नाम का बीज कृषि विभाग के गोदामों के जरिए किसानों को बांटा गया। प्रादेशिक कॉपरेटिव सोसाइटी के भंडारों से बीज का वितरण हुआ। बीज को प्रामणित किया उत्तर प्रदेश बीज प्रामाणिकरण संस्थान ने। एक हेक्टेयर में करीब 15 किलो बीज की खपत है। बीज 80 रुपये किलो बिकी, जिसमें किसानों को मिली 12 रुपये की छूट। ये फसल 90 दिनों की है जो 15 जुलाई को बोई गई और 15 अक्टूबर तक काटी जानी है। इस हिसाब से अब तक फसल में फूल बन जाते और फल की शक्ल में फलियां आने लगतीं। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं।
पीसीएफ के जीएम की मानें तो बुंदेलखंड के जालौन और उरई में 100 क्विंटल, झांसी में 100, ललितपुर में 300, हमीरपुर में 50, महोबा में 50, बांदा में 200, आगरा में 20, सीतापुर में 100, फतेहपुर में 100 और बाराबंकी में 50 क्विंटल यही दगाबाज बीज यानी आजाद वन की सप्लाई हुई। अब जब जगह-जगह से इस धोखे की हकीकत सामने आने लगी है। जिसके बाद डीएनए और दूसरे टेस्ट की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
आईबीएन-7
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Monday, September 6, 2010
थेलिसिमिया पीड़ित पांच वर्षीया अनिष्का को जिले के नोजवान देंगे जिंदगी
Friday, August 20, 2010
इतिहास रचने को तैयार है पीपली लाइव,Based on the condition of Bundelkhand farmers
इतिहास रचने को तैयार है पीपली लाइव
सिनेमा में प्रचार और विपणन का रिकॉर्ड भी पीपली लाइव ने बना लिया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि करीब तीन करोड़ की लागत से बनी एक हिंदी फिल्म के दुनिया भर में सिर्फ प्रचार पर सात करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। आमतौर पर हिंदी फिल्मों के प्रचार पर इसकी लागत से आधा या इसके बराबर ही खर्च होता है लेकिन निर्माण लागत के दोगुने से भी ज्यादा इसके प्रचार पर खर्च करके आमिर खान की प्रोडक्शन कंपनी ने हिंदी सिनेमा में प्रचार की अहमियत को नए सिरे से परिभाषित किया है। नईदुनिया से खास बातचीत में आमिर खान ने बताया कि पीपली लाइव अपनी निर्माण लागत और प्रचार पर हुए खर्च को पहले हीसैटेलाइट राइट्स बेचकर वसूल कर चुकी है। पीपली लाइव के सैटेलाइट राइट्स दस करोड़ रुपये में बिक चुके हैं।
मतलब यह कि अब सिनेमाघरों से जो भी रकम आमिर खान की झोली में आएगी, वह उनका शुद्ध मुनाफा होगा। आम तौर पर बड़े सितारों वाली हिंदी फिल्में ही देश के पांच सौ से ऊपर सिनेमाघरों में रिलीज होती हैं। इस लिहाज से पीपली लाइव का एक साथ छह सौ सिनेमाघरों में रिलीज होना फिल्म उद्योग के लिए कथानक के लिहाज से नई शुरुआत मानी जा रही है। ट्रेड विशेषज्ञ विकास मोहन का मानना है कि पीपली लाइव अगर कामयाब होती है तो हिंदी सिनेमा में अच्छी कहानियों का दौर लौटेगा और सितारों पर फिल्म उद्योग की निर्भरता कम होगी।
पीपली लाइव को मिले प्रचार का ही नतीजा है कि ब्रिटेन की मशहूर वितरक कंपनी आर्टिफिशियल आई ने पहली बार कोई हिंदी फिल्म खरीदी है। यह कंपनी विश्व सिनेमा की उन फिल्मों को ही अपने खास सिनेमाघरों में प्रदर्शित करती है, जो लीक से हटकर बनी हुई होती हैं। आमिर ने यह राज भी खोला कि पीपली लाइव दरअसल गांवों में बढ़ते शादी और रीयल इस्टेट कारोबार की तरफ लोगों का ध्यान खींचती है(पंकज शुक्ल,नईदुनिया,दिल्ली,12.8.2010)।
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भूखे बुंदेलों के हक पर अमीरों का डाका
उरई। बुंदेलखंड के बीहड़ में बसे गांवों के लोग भुखमरी के मुहाने पर खडे़ हैं। उरई जिले के नंदीगांव व रामपुरा ब्लाकों के दर्जनों गांवों के बाशिंदों के घरों में महीने में बमुश्किल 15 दिन ही चूल्हा जलता है और वह भी एक समय। ज्यादातर भूमिहीन और गरीबों के पास बीपीएल और अंत्योदय कार्ड तक नहीं हैं।
पूरा भोजन ना मिलने से महिलाएं, पुरुष और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। दलित बाहुल्य गांवों की हालत तो और भी ज्यादा खराब है। सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं अमीरों के पास पास बंधक है। जिले के नंदीगांव विकासखंड के मानपुरा गाव में 15 लोगों के बीपीएल और 31 अंत्योदय कार्डधारक हैं। कार्डधारकों में 20-20 बीघा के मालिक शीतल और अशोक, 15-15 बीघा के ठकुरदास व वृंदावन, 18 बीघा के फुलजारी और 10 बीघा के रूप नारायण शामिल हैं। सीमात किसान और भूमिहीन फूलमती, रघुराई, चेतराम, शिवकुमार, हरगोविंद, ज्ञानसिंह, राजकुमार समेत तमाम ग्रामीणों के पास गरीबी कार्ड नहीं हैं। रामपुरा विकास खंड की हमीरपुरा ग्राम पंचायत को अंबेडकर ग्रामसभा का दर्ज प्राप्त है फिर भी इस गाव के लोगों की बदहाली प्रशासन के लिये चिंता का सबब नहीं बन पा रही।
रामनारायण दोहरे भूमिहीन हैं, लेकिन उनके पास गरीबी कार्ड नहीं है। वे बताते हैं कि दस दिन भी घर में खाना बन जाये तो बड़ी बात है। पड़ोसियों से मांगकर भूख मिटाने का इंतजाम करना पड़ता है। उनके पांच बच्चे अभी से आधे पेट रहकर सो जाने के आदी हैं। रामनारायण को स्वयं भी पूरी खुराक न मिलने से कमजोरी आ गयी है, जिसकी वजह से जाबकार्ड होते हुए भी प्रधान उन्हें काम नहीं देता।
60 वर्षीय नाथूराम की समस्या कुछ अलग है। उनके पास बीपीएल कार्ड तो है लेकिन अनाज खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। इस गाव में सिर्फ 37 लोगों को बीपीएल व 20 को अंत्योदय कार्ड जारी हुए हैं जबकि 75 प्रतिशत दलित आबादी वाले इस गाव में लगभग हर परिवार की हालत आर्थिक रूप से दयनीय है। कई लोग दाल या सब्जी के बजाय खड़े नमक से सूखी रोटी खाकर गुजारा करते हैं लेकिन फिर भी उनके पास सामान्य श्रेणी का राशनकार्ड है।
भट्टपुरा में भूमिहीन भूरेलाल के 6 पुत्रियां व एक पुत्र है। फिर भी इनके पास एक एपीएल कार्ड है। अंत्योदय कार्डधारक कढ़ोरे ने बताया कि वे उधार लेकर सस्ता राशन खरीदते हैं और बाद में आधा सामान बाजार में ब्लैक कर देते हैं जिससे उधार चुकता कर सके। मिर्जापुर जागीर में 50 बीघा के रामरतन के पास तो बीपीएल कार्ड है, लेकिन सतीश, सुंदरलाल व सूरज के पास एपीएल कार्ड ही हैं जबकि यह सब पूरी तरह भूमिहीन हैं। नरौल में 40 प्रतिशत भूमिहीनों के पास गरीबी कार्ड नहीं हैं। कुछ ऐसे ही हालत बुंदेलखंड के कई अन्य जिलों के गांवों की भी है।
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Sorce:http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6384258.html
Monday, July 26, 2010
Tikamgarh Orchha, A Place of Bundelkhand.http://www.Bundelkhanddarshan.com
Orchha, is a charming village on the banks of river Betwa, a prominent river system in the Bundelkhand region. For those who are not familiar with Bundelkhand, this is the region which lies in the central most part of India, occupying southern region of UP and northern region of MP. Prominent cities include, Jhansi, Hamirpur, Chitrakoot, Banda, Chattarpur, Khajuraho, Panna, Tikamgarh, Sagar to name a few. The economy is mostly farming and little bit of tourism, mostly due to world renowned Khajuraho temples and Orchha, which is fast picking up as a major tourism attraction and is en-route to Khajuraho. I primarily belong to Bundelkhand region, and as a child growing up here, I have been to most of these places, but among all, Orcha is my favorite. It’s located on the banks of a beautiful river, famous Ram temple, Forts (with Bundeli and Mughal influence), national park and nice resorts.
Sunset at banks of river Betwa
Orchha Landscape
This time during my trip to Jhansi, like everytime, we drove to Orchha, around 25 kms from Jhansi, a quick and easy drive and a perfect getaway place. We stopped at the Azad memorial, a small cave, where Shaheed Chandra Shekhar Azad was in hiding from Britishers during freedom struggle, this place is very quite with a Hanuman temple and it is said that Azad disguised himself as priest of this temple and ran his freedom mission from here. There is a small creek as well, A must stop if you want to get a feel of freedom struggle.
Next stop was the Orchha fort, which is pretty huge with amazing architecture and views. Orchha use to be main center and capitol of the mighty Bundela dynasty during 15-16th century. Orchha fort primarily contains, Jahangir Mahal, Bundela king of Orchha built to welcome and honor his friend, Jahangir (Salim), the Mughal prince after he became the emperor, following Akbar. Jahangir Mahal, is a fine example of perfect symmetry, It provides a breath taking view of the river side and the chattris. There are various fine paintings on walls and ceilings using vegetable colors. Next to Jahangir Mahal, is the Raj Mahal (King and Queen’s Palaces). These have some fine paintings of Hindu Gods, including Lord Vishnu and His 9 avatars, exquisitely done on the ceilings of the halls inside the palace.
Lord Ram painting on the ceilings.
It is said that the Queen of Orchha was a big devotee of lord Ram, and she insisted her Husband to invite Lord Ram from Ayodhya to Orchha. She built a huge Chaturbhuj Temple in His honor. the temple was built in such a manner that the queen could see Lord from her Palace’s window. But before agreeing to move to Orchha, there was a condition that Lord Ram had, that he would remain in the place where he would be first brought. When Queen reached Orchha, the Chaturbhuj temple was still under finishing touches…so she requested Lord Ram to be placed in the Palace next to the temple, later when they tried to move the idols, it was impossible to move, and then they remembered lords wordings. As a result the palace became the residence of lord Rama and is currently known as famous Ram Raja Temple, local guide tells us. Also, this is the only temple(in a shape of a palace) in India where lord Ram is worshipped as a King.
Jahangir Mahal
Jahangir Mahal
It was almost time for Sunset, so our next stop was banks of Betwa river. The river is very scenic and is surrounded by small Chattris and some well hidden resorts on one side and national forest on the other side. The flow in the river was pretty heavy with bunch of rapids which makes it a perfect place for white water rafting, however this sport is not well developed here. It’s all natural beauty. The view during sunset were amazing…
Betwa River
From here we started to visit the Ram Raja mandir, as it was time for the evening ‘Aarti’. We bought some parshaad…my favorite here is brown milk cake…very tasty. Outside of the Ram Raja temple, you can visit Sawan Bhadon palace and Phool Bagh, showcasing the story of Hardaul, the prince of Orchha. There is a story about him as well…his brother Jujhar suspected his queen’s relationship with Hardaul and ordered her to poison him, however Queen could not do this but as proof of his innocence Hardaul took poison himself and died, giving birth to a legend of noble sacrifice, people of Bundelkhand still worship Hardaul.
Moniye dancing.
Note: Ram Raja temple gets very crowded during Ramnaumi celebration, which is the busiest time of the year in Orchha. I remember one time we litrally came back from the highway because there was no room to even put your feet on the ground. Also during this time, you can see tribal people (Moniye) wearing and holding peacock feathers in their hands and doing traditional dance performances etc.
After darshan and aarti, our next stop was the light and sound program, which happens daily in the fort area. The show was simply great and the lighting etc were amazing, it feels like the entire area has come to life. During the show they narrate the entire history of Orchha and Bundela rulers and their dynasty. To read more about it, you can visit the wiki at http://en.wikipedia.org/wiki/Orchha. The show happens twice daily, first at 7 pm in English and last at 8 pm in Hindi. Seems like MPT and ASI have invested a lot of money in setting up the light and sound programs around the famous places and have become a big hit not only among tourists but among the locals as well. Similarly, they have a light and sound show in Jhansi fort, which is awesome, depicting the life of Rani Laxmi Bai, the famous queen warrior of Jhansi and her fight for freedom during the great revolt of 1857. Famous bollywood star Sushmita Sen and Om Puri have landed their voices as Rani Laxmi Bai and the Great Fort of Jhansi. I would highly recommend these two shows if you are in this part of the country. The shows are great for all ages, my 6 yr old really liked it as well.
Light And Sound at Orchha
Jhansi Fort entrance gate
After the show we headed back to Jhansi, however in the past, We have stayed here in one of the river side resort. Bundelkhand Riverside resort and Betwa Cottages(run by MPT) are pretty good and have very nice location, I would certainly recommend spending one night here, if you have time. Also due to Orchha’s
close proximity to Jhansi, which is one of the biggest railways junction, you can visit here anytime you are passing from Jhansi. Very conveninent and does not require any advance planning. I think the resorts have lot of accomodation and finding a room would not be very difficult, but the stay would be worth it, I can certainly promise that. :)
Happy journey!!!
http://www.ghumakkar.com/2010/01/16/orchha-a-precious-%E2%80%98gem%E2%80%99-of-bundelkhand/
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Bundelkhand Region Is Full of Minerals
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Saturday, July 24, 2010
आत्मनिर्भरता की नजीर बन गयी कला देवी !
आत्मनिर्भरता की नजीर बन गयी कला देवी !
‘‘जिन्दगी को जीने का जज्बा हो, तो कुछ भी कमतर नहीं होता । मेरा शहर अपना घर है, परदेश घर नहीं होता ।। ’’
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Wednesday, July 14, 2010
We want solved water problem in bundelkhand and its solution.
रोटी को पैदा करने कि लिए सिचाई के जल कि आवश्यकता है जिसके लिए सदियों से बुंदेलखंड का किशन परेसान है ! यदि पानी का भरपूर प्रबंध कर दिया जाता है तो सारी समस्याओं का समाधान स्वमेब हो जायेगा!
अनेक क्षेत्रों में थोडा थोडा से विकास सरकारी खजाने की बर्बादी के सिवा कुछ नहीं है क्योंकि उससे न तो विकास दीखता है और न ही रोटी होती है और न रोजगार !
उपाय :
पानी के प्रबंध के लिए धसान नदी पर वरापटा पर बांध बनाना उपयुक्त रहेगा क्योंकि केवल २०० मी. बांध बनना है और दोनों तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ है केवल नदी पर ही पक्का बांध बनना है इस पर चाहे कितना भी पैसा लगे २०० मी.पक्का ऊँचा बांध बन जाने से छतरपुर और टीकमगढ़ के सभी लोगों की सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा ! क्योंकि पानी का प्रबंध मुख्या है वही जीवन है !
डॉ.काशीप्रसाद त्रिपाठी
टीकमगढ़
Wednesday, July 7, 2010
हमदर्दी के नाम पर बुंदेलखंड की सियासत
बुंदेलखंड को लेकर उत्तर प्रदेश में फिर राजनीति गरमा गयी है. बुदेलखंड के लिए पैकेज देने के कांग्रेस के दांव के बाद दूसरे दल कांग्रेस को पटखनी देने की जुगत में हैं. कांग्रेस और सपा तो लगातार इसे सियासी पैकेज साबित करने में जुटी है, जबकि बुंदेलखंड मसले पर भाजपा किस करवट बैठेगी ये अभी साफ़ नहीं है....
ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि बुंदेलखंड पर दिल्ली की सरकार के पैकेज घोषित करने के बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है. कांग्रेस ने बुंदेलखंड पर अपना दांव चल दिया है तो सपा-बसपा इस दांव को उलटा करने में जुट गयी है. कांग्रेस नेता इस पैकेज के बाद बुंदेलखंड में पार्टी को खड़ा करने के सपने सजोने लगे हैं. कांग्रेस नेताओं को लगता है कि बुंदेलखंड के बहाने उन्हें एक बड़ा हथियार मिल गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी का मानना है कि राहुल गांधी उस इलाके कि समस्याओं से खुद रूबरू हुए थे, जो दस सालों से उपेक्षित था, अब अगर बसपा को लग रहा है कि ये पैकेज कम है तो क्यों नहीं बसपा राज्य के बजट से उस कमी को पूरा करके बुंदेलखंड के लिए काम करती.
इसके पलटवार में बहुजन समाज पार्टी का कहना है कि आधी-अधूरी धनराशि का पैकेज घोषित कर इस इलाके की बदहाली के लिए कांग्रेस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या कहते हैं कि कांग्रेसी इसको लेकर राहुल गांधी के महिमामंडन में जुटे हैं, उन्हें बुंदेलखंड की समस्याओं से कुछ लेना-देना नहीं है. श्री मौर्या का कहना है कि बुन्देलखण्ड की जनता ने झांसी और ललितपुर के विधानसभा उपचुनाव में बसपा को जिता के बता दिया है कि वो किसके साथ है. इस हार के बाद ही कांग्रेस को पैकेज की याद आयी.
कुछ इसी तरह की बातें सपा भी कर रही है. सपा बुंदेलखंड पर कांग्रेस की राजनीति आलोचना कर रही है तो बसपा को भी आड़े हाथों ले रही है. सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि ये सब वोट बैंक के लिए हो रहा है न कि बुंदेलखंड की जनता के भले के लिए.
जबकि भारतीय जनता पार्टी इस मसले पर अपना रुख तय नहीं कर पायी है. वो इस पैकेज के बहाने केंद्र और राज्य दोनों पर निशाना साधना चाहती है. वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी का कहना है कि अगर वाकई ये जनता के भले के लिए है तो अच्छी बात है लेकिन अगर इसमें राजनीति की गंध आती हो तो ये ठीक नहीं है. क्योंकि बुंदेलखंड की समस्याओं पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. बहरहाल ये साफ़ नज़र आ रहा है कि सभी दल अपनी रणनीति २०१२ के विधानसभा चुनाव को लेकर बना रहे हैं. सबकी कोशिश है कि किसी तरह से बुंदेलखंड की जनता को खुश कर लिया जाए.